खामोशियों को तोड़ो
खामोशियों को तोड़ो
खामोशियों को तोड़ो,
कुछ तो बोलो,
ना हो अगर कोई सुनने वाला,
तो अपने दिल की आवाज़,
लफ़्ज़ों के मोतियों में पिरोकर,
काग़ज़ पर उतारो,
यूं खामोश रहकर,
खुद को ना तोड़ो,
कुछ अंजाने रिश्तों में उलझ कर,
अपनों को ना भूलो,
रिश्ता उस रब से भी है तुम्हारा,
जिसने तुम्हें ज़िंदगी दी
कुछ भरोसा उस पर भी कर लो,
खुद से इतने भी खफा मत हो,
की मनाने की वजह ही ना हो,
भीड़ में इतना भी गुम ना हो जाओ
खुद की परछाईं से डर जाओ,
बदलते हालातों की वजह तुम नहीं हो,
सब कुछ तुम कर सकते हो
इस भूल में मत रहो,
कुछ काम उस ख़ुदा पर भी छोड़ दो,
ना जीत का गुरूर करो,
ना हार का शोक मनाओ,
खता तो किसी से भी हो सकती है,
फिर बेवजह खुद को क्यूँ सताते हो,
छोटी से ज़िंदगी है,
शिकवे शिकयतों में क्यूँ जीते हो,
क्यूँ इतना मुश्किल समझते हो,
खुद को और दूसरों को माफ करना,
कर के तो देखो,
फिर सारा बोझ उतर जायेगा,
दिल फिर से आज़ाद हो जायेगा,
खुशियों का मौसम फिर लौट आयेगा,
ज़िंदगी का खेल खेलो,
हार जीत को पीछा छोड़ो,
बस खेल का मज़ा लो,
बस खेल का मज़ा लो।।।