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Rashi Mongia

Abstract

4  

Rashi Mongia

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ये तेरे मेरे बीच

ये तेरे मेरे बीच

2 mins
301


एक नादान बच्चे की नादानी,

सिखा गई ज़िंदगी की कहानी,

वो हंसते हुए अपने मालिक से बोला,

क्यों है ये दूरी तेरे मेरे बीच,

तुम जहां रहते हो,

मैं वहां काम करता हूं,

जिन सड़को पे तुम घूमते हो,

वहां मैं रहता हूं,

जिन कपड़ों को तुम उतार फेंकते हो,

वो मेरे तन को सजाते हैं,

जिस खाने को तुम यूं ही प्लेट में छोड़ देते हो,

उस बचे हुए खाने से मेरा पेट भरता है,

जिन सिक्कों को तुम चिलर समझ कर अलग कर देते हो,

मेरी तो सिर्फ उतनी ही दिन भर की कमाई होती है,

पढ़ते हो तुम बड़े बड़े स्कूलों में,

फिर भी हम जैसे अनपढ़ बच्चों के

बिना तुम्हारा काम पूरा नहीं होता,

तुम्हे नौकरी में छुट्टी के भी पैसे मिलते है,

और हमारी एक एक छुट्टी के पैसे कटते है,

तुम्हारे लिए मेडिकल लीव,

और हमारे लिए बहाना मार रहा होगा कामचोर,

तुम सजो तो वाह भाई वाह,

हम सजे तो कहां चले लाड़ साहब,

काम नहीं करना क्या,

तुम्हारी बेईमानी की भी कीमत है,

और हमारी ईमानदारी का भी कोइ मोल नहीं,

दिखने में तो हम एक से है,

धूप तुम्हे भी लगती है, हमे भी,

पसीना तुम्हारा भी बहता है, हमारा भी,

फिर उस पसीने की कीमत अलग कैसे,

जब चोट लगती है तू खून तुम्हारा भी 

बेहता है, और हम्हारा भी,

फिर इतना फर्क क्यूं तेरे मेरे बीच

बहुत समझाती है मेरी माँ,

कि हम अलग है, उनके जैसे नहीं,

पर मेरी भी ज़िद है, मिटा दूंगा,

ये बीच के फासले, जिसने इंसानों को इंसानों से अलग कर दिया,

अगर पैसे ही दूरी मिटा सकते,

तो मैं भी खूब कमाऊंगा मां,तुझे भी उन जैसे बनाऊंगा,

ये वादा है तुझसे, ये वादा है तुझसे मां।


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