वो बेफिक्री के दिन
वो बेफिक्री के दिन
वो बेफिक्री के दिन थे,
जब कॉलेज में पढ़ते थे,
ना किसी के थे,
ना कोई हमारा था,
फिर भी लगता था पूरा कॉलेज अपना,
थे कुछ हमारे क्रश,
और किसी के थे हम क्रश,
क्लासेज के बाहर,
लाइब्रेरी की बालकनी ,
से पूरे कॉलेज को देखते,
किस ने क्या पहना है,
कौन किसको देख रहा है,
इससे ज्यादा ज़रूरी कुछ नहीं होता था,
कैंटीन के रोज के चक्कर लगते,
कभी ट्रीट हमारी होती,
तो कभी दोस्तों की,
फिर भी टॉपर्स लिस्ट में नाम आता था,
एक दिन एक प्रोफेसर बोली,
तुम लोग इतना घूमते हो,
फिर भी न्यूज पेपर के पेज में
मेरिट लिस्ट में नाम आता है तुम लोगों का,
उन्हें क्या कहते,
कि हम भी दिल में,
कुछ कर जाने का जज़्बा लिए घूमते है,
बस मुस्कुरा देते,
ना खुद की जीत,
ना खुद की हार,
बस कॉलेज के प्रेस्टिज,
के लिए जीते,
क्या दिन थे वो,
आज भी उन दिनों की यादें,
दिल को गुदगुदा जाती है,
थे वो ज़िंदगी के यादगार दिन,
जब हम अपने पराये, तेरा मेरा ,
के बिना भी बहुत खुश थे,
ना जाने कॉलेज से निकलते ही क्यूँ,
दोस्तों, और दोस्ती के,
मायने बदलते गए,
जीत हार प्यार दुश्मनी,
सब में उलझ के रह गए,
आज मुड़ कर देखा तो फिर,
याद आए वो बेफिक्री के दिन,
वो बेफिक्री के दिन।।।