समानांतर प्यार
समानांतर प्यार
चलो यूं ही सही
ज्यामितीय की
दो समानांतर रेखाओं की तरह
हम दोनों...
बिना मिले
साथ रहेंगे जीवन भर
समान दूरी पर
मर्यादा के नियमों में बंधे
हम दोनों...
जैसे गुरुत्वाकर्षण में बंधकर
रहते हैं
सूरज और धरा..
अनवरत
सदियों सदियों से
क्योंकि दोनों जानते हैं
नियमों का महत्व
जिनके परे
बहुत कुछ
तहस नहस हो जाता है..
गर सूरज ने कोशिश भी की
धरा के नजदीक आने की
तो झुलस झुलस जाएगी ये धरा..
नियमों का उल्लंघन
सदा ही अशोभनीय
दुष्कृत्य
इसलिए
दूर से ही सूरज
अपनी धरा को भेजता है
अपने प्यार की गर्माहट..
और उस गर्माहट को पाकर
खिल उठती है धरा..
तभी तो बदली के प्रेमपाश में
जब छिपता है सूरज
धरती उदास सी हो जाती है....
वचन लें चलो
हम दोनों..
निभाकर मर्यादा
निभाएंगे प्रेम अपना
एक दूसरे की ऊर्जा बनकर
ताकि बनी रहे
प्रेम शब्द की शुचिता
पवित्रता अखंडता..
परंतु
याद रहे कि
आना है अगले जन्म
दो समानांतर रेखा नही
दो प्रेमिल बिंदु बनकर
जिनको
एक साधारण विवाह रेखा द्वारा
जोड़ा जा सके
एक अटूट बंधन में...