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संदीप सिंधवाल

Abstract Romance

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संदीप सिंधवाल

Abstract Romance

सजाने लगे हैं

सजाने लगे हैं

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उनको दिल में बसाने लगे हैं 

दिन में ख्वाब सजाने लगे हैं


इश्क की कीमत चुकाई बड़ी

यार वो आंखें दिखाने लगे हैं।


गीत कोई गाते थे हम कभी

अब वो मुझे बजाने लगे है।


इश्किया रास्तों की क्या कहें

अंधेरों चलना सिखाने लगे हैं।


इतना भटके है गलियों में कि

अंधे पता हमें बताने लगे हैं।


ये शहर खामोश तब हो गया 

गम जबसे हम छिपाने लगे हैं।


प्यार से बनी जो राह 'सिंधवाल' 

वो उधर कांटे बिछाने लगे हैं।



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