सीता की अग्निपरीक्षा कब तक?
सीता की अग्निपरीक्षा कब तक?
एक नहीं दो-दो मात्राएं, नर से बढ़कर नारी है
पुरुष कल भी आभारी था, आज भी आभारी है
क्यों है ये भेदभाव?जो बेटी बहू से अधिक प्यारी है
ज़ुबां चाहे कुछ कहे, पर व्यवहार में पीड़ित नारी है
"सीता की अग्निपरीक्षा कब तक?"जो अभी तक जारी है
जन्मते ही भेद सहती पर, वह कभी कुछ भी न कहती है
झेलती है कष्ट -ताने, और त्याग हरदम ही करती है
पान करती सतत विष का, गम उजागर करने से डरती है
हित सभी का होए जिस विधि, वह सतत यह ध्यान धरती है
सब काम हिम्मतपूर्ण उसके, मगर वह फिर भी बेचारी है
"सीता की अग्निपरीक्षा कब तक ?" जो अभी तक जारी है
करती न्यौछावर सारी खुशियां, उसको पथ पर शूल मिलते हैं
अन्नपूर्णा है वह जिसकी, उस भवन में फूल खुशियों के खिलते हैं
शक्ति अनुपम है ये अद्भुत, हॅंसी में दो परिवार मिलते हैं
वह संयोजक है दो कुलों की, उनके आपसी संस्कार मिलते हैं
नियोजन करती है जो सबका, कर पाती नहीं खुद की तैयारी
"सीता की अग्निपरीक्षा कब तक ? जो अभी तक जारी है
कब तक चलेगी करुण-गाथा, न्याय कब तक उसको मिलेगा ?
रूप चण्डी का धरे तो, जग ही क्यों सकल ब्रह्माण्ड भी हिलेगा
श्रेष्ठ है कमतर नहीं कुछ, ये भाव जब हर दिल में अविरल बहेगा
पूर्ण शक्ति है तू अखिल जग की, हर पुरुष दिल से यह कहेगा
प्रतिष्ठा नारी को सचमुच मिलेगी, और दूर होगीं विपति सारी
रुक जाएगी अग्निपरीक्षा और हर्षमय होगी ये दुनिया सारी।
