शुभ रात्रि
शुभ रात्रि
माना रात गहन है, अंधेरी भी है और काली भी है।
लेकिन रात के बाद दिन का आना निश्चित तो है।
रात खुद को सिर्फ रात भर ही तो रख पाएगी।
सुबह सूरज को आने से भला कैसे रोक पाएगी।
अंधेरों से डर कैसा, अगर सुबह की इंतजार करना आता है।
छलता है मन कई बार माना अंधेरे भी तो डराते हैं ,
डर लगता है कहीं सुबह ओस भरी,
धुंधली और वर्षा से भीगी हुई पनियाली हुई तो----
तो भी हंसते हुए मन के कोने से कोई बोला चाहे कुछ भी हो,
होगी तो सुबह ही।
जैसे रात ढली है, धुंध भी ढल जाएगी।
वर्षा भी रुक जाएगी।
यह सब चीजें भी भला गुनगुनी धूप को कब तक रोक पाएंगी।
अभी जब हम सुबह की इंतजार में मुस्कुरा कर सो जाएंगे।
तभी तो नए दिन का खुशी से स्वागत कर पाएंगे।
सो कर उठेंगे गुनगुनी सी धूप आंखों पे होगी।
अगर रात में ना सोए तो सुबह भी अलसाई सी ही होगी।
यूं ही मुस्कुराते हुए जब रात को सो जाओगे
तो सुबह जरूर परमात्मा के उपहार में दिए गए
एक और दिन का सही उपयोग कर पाओगे।
शुभ रात्रि।
