श्रुत कीर्ति
श्रुत कीर्ति
जब गये भरत
छोड़ राज वन में
पीछे पीछे चल दिए
भाई शत्रुघ्न भी
छोड़ श्रुत कीर्ति को
राजमहल में
करने सेवा भरत की
दर्द नजरों का
दिखा ना
श्रुत कीर्ति ने भी
किया इंतजार
बरस चौदह आखिर
अपने पिया का
जैसे गये लखन
श्रीराम संग
वैसे गए शत्रुघ्न
भरत संग
सिया, उर्मि,
मांडवी संग श्रुत कीर्ति
मिला बिछोह पिया से
सिया को वन से
रावण लेकर गया
लखन राम संग थे वहाँ
शत्रुघ्न भरत संग आये
फिर भी इन तीनों ने
हर पल की सेवा
माताओं की अपने
हर दर्द छिपाकर
ऑंखों से अश्क
आये न कभी
बस निभाया इन्होंने
हर धर्म अपना
दर्श का है नमन इन्हें
इन्होंने रखा सबको
प्यार में बांधकर
अपने सबको।