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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Abstract

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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Abstract

" श्रृंगार और प्रकृति "

" श्रृंगार और प्रकृति "

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मन कहाँ स्थिर रहता है 

जब उदिग्नता के जालों 

में फँस जाता है ,

मानस पटल पर 

कल्पनाओं की फुहारें 

अंगड़ाइयाँ लेने लगतीं हैं ,

निशब्द शांत परिधियों में 

कागज ,

कलम,

 दवात 

निकल आते हैं ! 

कविता की सुन्दर 

रूप- रेखा और एक 

अद्भुत छवि उभरने लगती है ,

शब्दों के श्रृंगार से 

उसके रूप सजाते हैं 

रंग- बिरंगी परिधानों 

से एक मूर्त रूप देते हैं !!

पर उम्र का एहसास 

हमारी श्रृंगारिक कविता 

से दूर हो गया 

अब मन बावला 

प्रकृति के आँचल में 

मधुप बन गया 

कमलिनी के पलक में 

कविता का सृजन 

करने लगा 

किसीने जोर से आवाज दी 

हमारी कविता 

अधूरी रह गयी 

श्रृंगार और प्रकृति 

दोनों बहनें हमसे 

रूठ कर ना जाने 

कहाँ चलीं गयीं ?


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