श्रीमद्भागवत-९२ ;भरत चरित्र
श्रीमद्भागवत-९२ ;भरत चरित्र
श्री शुकदेव जी कहें, हे राजन
भगवद्भक्त थे राजा भरत बड़े
विवाह फिर किया उन्होंने
विशवकर्मा की कन्या पंचजनी से।
पंचजनी के गर्भ से उनके
पांच पुत्र पैदा हुए थे
सुमति, राष्ट्रभृत , सुदर्शन, आवरण
और धूम्रकेतु नाम के।
अत्यंत वात्सल्य भाव से
भरत जी प्रजा का पालन करते
श्रद्धापूर्वक यज्ञ करते हुए
श्री हरि का भजन वो करते।
पुण्यरूप फल जो यज्ञ से मिलता
वासुदेव को अर्पण कर देते
अन्तकरण शुद्ध हो गया उनका
इस तरह कर्म करने से।
इस तरह उन्होंने प्राप्त की
उत्कृष्ट भक्ति श्री वासुदेव में
एक करोड़ वर्ष निकल गए
तब संपत्ति को बांटा पुत्रों में।
राजमहल से निकल गए वो
पुलह आश्रम में चले गए
जहाँ पर चक्र नदी भरी हुई
चक्राकार शालिग्राम शिलाओं से।
भगवन की आराधना की वहां
अन्तकरण जब शान्त हो गया
भगवद्सेवा में सदा तत्पर
मृगचर्म धारण कर लिया।
