श्रीमद्भागवत -३१; विराट शक्ति की उत्पत्ति
श्रीमद्भागवत -३१; विराट शक्ति की उत्पत्ति
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तब भगवान प्रवेश हो गए
एक साथ ग्यारह इंद्रियों में
मिला दिया तत्व समूह को
क्रिया शक्ति से उन्हें आपस में ।
तब आदिपुरुष विराट उत्पन्न हुए
चराचर विद्यामान है जिसमें
विशवरचना के तत्वों का गर्भ वो
हज़ार वर्ष वो रहा था जल में ।
यही भगवान का आदि अवतार है
तेज से प्रकाशित किया था उसको
विश्व की रचना करने हेतु
भगवान ने फिर जगा दिया उसको ।
सबसे पहले उसे मुख प्रकट हुआ
उससे अग्नि का प्रतिकार हो गया
फिर उसमें तालु उत्पन्न हुआ
उसमें वरुण का वास हो गया ।
नथुने प्रकट हुए जब उसके
अशवनिकुमार प्रविष्ट हुए थे
आँखें जब उसकी बनीं तो
प्रवेश सूर्य उसमें हुए थे ।
इस तरह विराट पुरुष से
पृथ्वी, आकाश, अंतरिक्ष प्रकट हुए
सारे लोक उत्पन्न हुए इससे
निवास करें सब इसी रूप में ।
वेद और ब्राह्मण प्रकट हुए थे
विराट पुरुष के मुख से वो तब
भुजाओं से क्षत्रिय, जंघाओं से वैश्य
शूद्र वर्ण चरणों से हुए सब ।
ऐसी उस भगवान की माया
मोहित करे सब ऋषियों को ये
इस की थाह कोई पा ना सके
हम सब उनको नमस्कार करें ।