श्रीमद्भागवत- २४५; भगवान का कुब्जा और अक्रूरजी के घर जाना
श्रीमद्भागवत- २४५; भगवान का कुब्जा और अक्रूरजी के घर जाना
शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित
फिर कुब्जा का प्रिय करने के लिए
सुख देने के लिए उसको
श्री कृष्ण उसके घर गए ।
बहुमूल्य सामग्रियों से सम्पन्न वो घर था
सुंदर आसन लगे हुए वहाँ
भगवान को घर में आते देखकर
उठाकर खड़ी हो गयी कुब्जा ।
विधिपूर्वक सत्कार किया और
पूजा की श्री कृष्ण और उद्धव की
परंतु आसन को बस छूकर ही
धरती पर बैठ गए उद्धव जी ।
स्वामी कृष्ण के चरणों में बैठे
कृष्ण ने तब कुब्जा को अपने
साथ में बिठा लिया और
क्रीड़ा करने लगे साथ में उसके ।
परीक्षित, कुब्जा ने इस जन्म में केवल
अंगराग अर्पित किया भगवान को
उसी एक शुभकर्म के फल में
ऐसा अवसर मिला था उसको ।
भगवान श्री कृष्ण के चरणों को
रखकर हृदय और नेत्रों पर
हृदय की सारी व्याधि शांत की
विरहताप शांत किया आलिंगन कर ।
भगवान को प्राप्त कर लिया
केवल अंगराग अर्पित कर
परंतु दुर्भगा ने गोपियों की भाँति
यही माँगा सेवा ना माँगकर ।
‘प्रियतम, आप कुछ दिन यहाँ रहकर
मेरे साथ क्रीड़ा कीजिए
क्योंकि हे कमलनाभ ! आपका
साथ ना छोड़ा जाता मुझसे ।
भगवान ने अभीष्ट वर देकर
पूजा स्वीकार कर ली उसकी
और उद्धव जी के साथ में
घर लौट आए कृष्ण जी ।
तदनंतर एक दिन श्री कृष्ण
बलराम और उद्धव के साथ में
अभिलाषा पूरी करने अक्रूर की
उनके घर वो गए थे ।
अक्रूर जी ने जब ये देखा कि
भगवान श्री कृष्ण, बंधु हमारे
बलराम जी के साथ पधार रहे
एकदम उठाकर वे खड़े हो गए ।
अभिनंदन, आलिंगन किया उनका
विधिवत पूजा करें वो उनकी
भगवान के चरम धोकर फिर
चरण धोवन सिर पर धारण की ।
चरणों को गोद में लेकर दबाने लगे
कृष्ण और बलराम से कहा
‘ भगवन, कंस को मारकर आपने
यदुवंश को संकट से बचा लिया ।
उन्नत और समृद्ध किया इस वंश को
आप दोनों तो आदिपुरुष हैं
जगत के कल्याण के लिए आपने
सनातन वेदमार्ग प्रकट किया है ।
प्रभो आप इस समय भी अपने
अंश बलराम जी के साथ में
पृथ्वी का भार उतारने के लिए
वासुदेव के घर अवतीर्ण हुए ।
आप ही सारे जगत के
एकमात्र पिता और शिक्षक हैं
आज मुझपर कृपा करने को
वही आप मेरे घर पधारे हैं ।
आज मेरा घर धन्य हो गया
योगिराज भी, प्रभु बड़े बड़े
जिसके लिए तरसा करते हैं
साक्षात दर्शन वो हो गया हमें ।
श्री शुक्रवार जी कहते हैं परीक्षित
तब भक्त अक्रूर जी ने
भगवान श्री कृष्ण की पूजा की
और स्तुति भी की उन्होंने ।
भगवान ने मधुर वाणी में कहा
आप गुरु, चाचा हमारे
हितेषी सदा से हमारे आप हैं
हम तो बस बालक तुम्हारे ।
आपकी रक्षा, कृपा के पात्र हम
बढ़कर आप सभी देवताओं से
क्योंकि उनमें जो स्वार्थ होता
नहीं आप जैसे संतों में ।
अपने दर्शनमात्र से संतपुरुष
कर देते पवित्र हैं सबको
आप हितेषी हमारे हम मानें
सहृदयों में सर्वश्रेष्ठ आप तो ।
पांडवों का हित करने के लिए और
कुशल मंगल जानने को उनका
चले ज़ाईए आप हस्तिनापुर में
हमने उनके बारे में ये सुना ।
कि राजा पाण्डु के मार जाने पर
युधिष्ठिर आदि कुन्ती के साथ में
बड़े दुःख में वे पड़ गए हैं
जानना चाहूँ मैं उनके बारे में ।
धृतराष्ट्र ले आए हैं उन्हें
हस्तिनापुर, जो राजधानी उनकी
आप तो जानते ही हैं कि धृतराष्ट्र
अंधे हैं और उनमें मनोबल की भी कमी ।
उनका पुत्र दुर्योधन दुष्ट है
आधीन होने के कारण उसके
कर पाते व्यवहार पुत्रों के समान ना
पांडवों के साथ कभी वे ।
इसलिए आप वहाँ जाइए और
मालूम कीजिए कैसी स्थिति उनकी
अच्छी या बुरी स्थिति को जानकर
देखूँगा मैं कि क्या करना सही ।
इस प्रकार आदेश दे अक्रूर को
भगवान कृष्ण घर लौट आए थे
बलराम जी और उद्धव जी भी
उस समय उनके साथ थे ।
