श्रीमद्भागवत-१६८भगवान् वामन जी का दो ही पग में पृथ्वी और स्वर्ग को नाप लेना
श्रीमद्भागवत-१६८भगवान् वामन जी का दो ही पग में पृथ्वी और स्वर्ग को नाप लेना
शुकदेव जी कहें, हे राजन जब
इस प्रकार कहा शुक्राचार्य ने
तब उनके प्रति कहा ये
राजा बलि ने बड़ी विनय से।
राजा बलि कहें, हे भगवन
सत्य है कहना आपका
जिससे अर्थ, काम, यज्ञ में बाधा न रहे
वही धर्म है गृहस्थों का।
परन्तु मैं प्रह्लाद का पौत्र
एक बार प्रतिज्ञा जो कर दी
कैसे मना करूं इस ब्राह्मण को
धन के लोभ में, ठग की भांति।
इस पृथ्वी ने कहा है ये कि
अधर्म नहीं असत्य से बढ़कर कोई
सब कुछ करने में समर्थ मैं
झूठे मनुष्य का भार, सहा जाता नहीं।
डरता नहीं नर्क से, दरिद्रता से
न ही दुःख के समुन्द्र से
न अपने राज्य के नाश से
और डरता नहीं मृत्यु से।
पर ब्राह्मणों से प्रतिज्ञा करके
डरता उसे धोखा देने से
घन आदि जो संसार की वस्तु
मर जाने पर सब साथ छोड़ दें।
यदि उन द्वारा ब्राह्मणों को
किया जा सका संतुष्ट न
लाभ की क्या रहा फिर
तो उन सबके त्याग का।
दधीचि, शिवि और महापुरुषों ने
प्राणों का दान दिया अपने
प्रनीयों की भलाई के लिए तो
क्या सोचना पृथ्वी दान देने में।
गुरुदेव, ऐसे लोग बहुत हैं
जो युद्ध में प्राणों की बलि देते
परन्तु ऐसे लोग दुर्लभ हैं
जो श्रद्धा से धन का दान करें।
इसलिए मैं इस ब्राह्मण की
अभिलाषा अवश्य पूर्ण करूंगा
ये विष्णु या और कोई हो
इच्छा अनुसार पृथ्वी इसे दूंगा।
अपराध न करने पर भी मेरे
बाँध ले मुझको यदि ये
तो भी अनिष्ट न चाहूँ इसका
क्योंकि ये है ब्राह्मण वेश में।
शुकदेव जी कहें, जब शुक्राचार्य ने
देखा शिष्य अश्रद्धालु गुरु के प्रति
तथा आज्ञा का उलंघन कर रहा
शाप दिया उसे, प्रेरणा से देव की।
कहा, मूर्ख ! तू है तो अज्ञानी
परन्तु बड़ा पंडित माने अपने को
उपेक्षा कर मेरी, गर्व कर रहा
न माने मेरी आज्ञा को।
इसलिए तू खो बैठेगा
शीघ्र ही अपनी लक्ष्मी ये
राजा बलि बड़े महात्मा थे
वो सत्य से नहीं थे डिगे।
वामन भगवान् की पूजा की
हाथ में उन्होंने जल लिया
तीन पग पृथ्वी का फिर
उन्होंने संकल्प कर दिया।
राजा बलि की पत्नी विन्ध्यावती
कलश लेकर आई वहां जल का
बलि ने भगवान् के चरणों को धोया
धोवन को सिर पर चढ़ा लिया।
इस अलौकिक कार्य की प्रशंसा
करें गन्धर्व और देवता
आकाश से उन सब ने की थी
उन दोनों पर पुष्पों की वर्षा।
अद्भुत घटना घटी उसी समय
वामनरूप बढ़ने लगा आकाश में
पृथ्वी, आकाश, स्वर्ग, ऋषि, मनुष्य
सबके सब समा गए उसमें।
उस त्रिगुणात्मक शरीर में
सम्पूर्ण जगत को देखा बलि ने
बाकी दैत्यों ने जब देखा ये
सभी अत्यंत भयभीत हो गए।
उस समय भगवान् की बड़ी शोभा थी
पृथ्वी को नाप लिया एक ही पग में
शरीर से आकाश और दिशाएं
स्वर्ग नाप लिया दुसरे पग से।
तीसरा पग रखने के लिए
बलि की कोई वस्तु बची न
दूसरा पग ही ऊपर जाते हुए
सत्यलोक में वो पहुँच गया।
