श्रीमद्भागवत -१६५; भगवान् का प्रसन्न होकर अदिति को वर देना
श्रीमद्भागवत -१६५; भगवान् का प्रसन्न होकर अदिति को वर देना
श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित
उपदेश प्राप्त कर पयोव्रत का
अदिति ने फिर बारह दिन तक
इस व्रत का अनुष्ठान किया।
भगवान् का चिंतन करती रहीं
एक निष्ठ बुद्धि से वे
भगवान् उनसे प्रसन्न हो गए
और उनके सामने प्रकट हुए।
पीताम्बर धारण किये हुए
शंख, चक्र, गदा लिए थे
अदिति थीं खड़ी हो गयीं
सहसा भगवान् को देख सामने।
दंडवत प्रणाम किया उन्हें
चेष्टा की स्तुति करने की
उमड़ आये नेत्रों में आंसू
प्रेम विह्वल हो बोल न सकीं।
चुपचाप खड़ी रहीं पहले फिर
धीरे धीरे स्तुति करने लगीं
कहें भगवान् आप यज्ञों के स्वामी
और यज्ञ भी स्वयं आप ही।
आपके चरणों का आश्रय लेकर
लोग भवसागर से तर जाते हैं
शरण में आपकी जो भी आये
विपतिओं का उसकी नाश करते हैं।
भगवान् आप हम सब के स्वामी
कल्याण कीजिये हमारा आप ही
भगवान् ने अदिति से कहा फिर
जब ऐसे उन्होंने स्तुति की।
कहें, देवताओं की जननी
अभिलाषा तुम्हारी जानता हूँ मैं
शत्रुओं ने पुत्रों की सम्पत्ति छीन ली
स्वर्ग से उन्हें खदेड़ दिया है।
उन बली असुरों को जीतकर
तुम चाहती हो तुम्हारे पुत्र
फिर से कीर्ति, ऐश्वर्य प्राप्त करें
युद्ध में उन सबको हराकर।
परन्तु देवी वो असुर सेनापति
इस समय न जीते जा सकते
क्योंकि ईश्वर और ब्राह्मण
इस समय अनकूल हैं उनके।
फिर भी देवी तुम्हारे इस व्रत से
बहुत प्रसन्न हूँ मैं इसलिए
उपाय तो सोचना पड़ेगा
मुझे कोई इस सम्बन्ध में।
क्योंकि मेरी आराधना करने का
कोई न कोई फल अवश्य मिले
अत: मैं प्रवेश करूंगा
अंशरूप से कश्यप के वीर्य में।
और तुम्हारा पुत्र बनकर मैं
रक्षा करूंगा संतानों की तुम्हारी
पति कश्यप में स्थित देख मुझे
सेवा करो उन प्रजापति की।
मत बतलाना यह बात तुम
देवी, किसी के पूछने पर भी
देवताओं का रहस्य जितना गुप्त हो
सफल होता है वो उतना ही।
शुकदेव जी कहें, ऐसा कहकर
भगवान् अंतर्धान हो गए
अदिति कृत कृत जानकार ये कि
भगवान् जन्म लें, मेरे गर्भ से।
बड़े प्रेम से पति कश्यप की
अदिति थीं सेवा करने लगीं
कश्यप तो सत्यदर्शी थे उनसे
कोई बात छिपी नहीं थी।
अपने समाधी योग से जान लिया
अंश उनमें प्रविष्ट भगवान् का
पता चला हरि अदिति के गर्भ में
स्तुति करें उनकी तब ब्रह्मा।
ब्रह्मा जी कहें, आप की जय हो
आश्रय समग्र जीवों के आप हैं
त्रिगुणों के नयामक आप ही
आपको मेरा नमस्कार है।
वास्तव में आप ही सबके विधाता
प्रजा और प्रजापतिओं के भी
स्वर्ग से भगाये देवताओं के
एक मात्र आश्रय आप ही।