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अजय एहसास

Classics

3  

अजय एहसास

Classics

ये है वर्तमान परिवेश

ये है वर्तमान परिवेश

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437


ये है वर्तमान परिवेश, ये है वर्तमान परिवेश

दम तोड़ती है इन्सानियत, इन्सान बचा है शेष

कोई है अधकचरा शिक्षक, नेतागीरी करता गपशप

छोटी सी भी गलती पाकर, शिक्षक पीटे थपथप थपथप।


बच्चा जो स्कूल को जाये, देता है शिक्षक को गाली

जब घरवाले ये सुनते हैं, देते शाबासी और ताली

साहब डंडा अपना ठोके, हेलमेट कहां है ऐसा टोके

दस रूपये हाथ मे देखे, बोले जाओ न कोई रोके।


टी टी ट्रेन में गर जो पकड़े, बोले हथकड़ियों में जकड़े

ठोके पीठ को दे शाबासी, पाता जब कागज के टुकड़े

बेच दिये है सब ईमान, चोरों ने बदले अब वेश

ये है वर्तमान परिवेश, ये है वर्तमान परिवेश।


कोटेदार जो राशन लाये, चावल सबके हक का खाये

खुश करने को परधानों को, चार चार बोरी घर भिजवाये

साहब के दफ्तर मे जाये, मेज के नीचे हाथ बढ़ाये

ऊपर की जो करते कमाई, उसको नीचे से पकड़ाये।


नाली और खड़ंजा खा गये, स्वच्छ नमामी गंगा खा गये

बच्चो का आहार खा गये, पेट भरा ना अंगा खा गये

फिर क्यो कहते देश के नेता,बदल गया है अपना देश

ये है वर्तमान परिवेश, ये है वर्तमान परिवेश।


नहीं पता सरकारें क्या, ये कौन व्यवस्था देता है

बैग परीक्षा केन्द्र में रखने, का दस रूपया लेता है

खाद बीज कालाबाजारी, लूट की करते सब तैयारी

सामने जाये आम आदमी, डांटते फिरते सब अधिकारी।


वोटर आइ डी बनकर आये, दस रूपया उसके भी खाये

सूट पहनकर टहल रहे हैं, मनरेगा खाते मे आये

आम आदमी जीये कैसे, उसकी न कुछ समझ में आये

ये सब हम क्यों कहते हैं, कोई तो मुझको बतलाये।


'एहसास' करूं कि कहता वही है, जो ये ना करने को पाये

बेईमानी मे भी ईमान, बात है बहुत विशेष

ये है वर्तमान परिवेश, ये है वर्तमान परिवेश।


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