Ajay Singla

Classics

4  

Ajay Singla

Classics

श्रीमद्भागवत -१५ ;गांधारी और धृतराष्ट्र का देह त्याग

श्रीमद्भागवत -१५ ;गांधारी और धृतराष्ट्र का देह त्याग

2 mins
87


तीर्थयात्रा से आये विदुर जी 

मैत्रय मुनि से ज्ञान प्रपात कर 

युधिष्ठर प्रणाम करें हैं उनको 

जब पहुंचे थे वो हस्तिनापुर। 


पूछें युधिष्ठर तब उद्धव से 

तीर्थों का हमें हाल सुनाएं 

द्वारके भी क्या जाकर आये 

वहां का भी समाचार बताएं। 


विदुर ने पांडवों को प्यार से तब 

उन तीर्थों का हाल बताया 

पर, यदुवंश का विनाश हो गया 

वो समाचार नहीं सुनाया। 


पांडवों को दुखी देख सकें ना 

इसीलिए ये छुपा गए वो 

सत्कार कर रहे पांडव सब उनका 

कुछ दिन फिर वहां रहे वो। 


धर्मराज का रूप विदुर जी 

माण्डव्य ऋषि ने शाप दिया था 

सौ वर्ष तक इस धरती पर

शूद्र बन उनको रहना था। 


काल की गति जानें विदुर जी 

धृतराष्ट्र को था समझाया 

कहें, महाराज मोह माया छोड़ दें 

अब सन्यास का समय है आया। 


पांडवों के दिए पर जीवित 

अब भी आप क्या जीना चाहो 

आप को इतना तो ज्ञान है 

बंधनों से अब मुक्त हो जाओ। 


विदुर ने जब था उन्हें समझाया 

ज्ञान की वर्षा उन पर कर दी 

धृतराष्ट्र सब छोड़ के चले 

गांधारी भी साथ में चल दी। 


सुबह युधिष्ठर पूछें संजय से 

दर्शन ना हुए दोनों के 

संजय भी थे बहुत व्याकुल 

कोई उत्तर वो ना दे सके। 


तभी वहां पर नारद आये 

युधिष्ठर को वो समझाएं 

सारा जगत ईश्वर के आधीन है 

ज्ञान से उनको, ये बतायें। 


एक दुसरे को मिलाता ईश्वर 

और उन्हें अलग भी करता 

प्रभु की लीला वो ही जानें 

दोनों की चिंता तू क्यों करता। 


सप्त स्त्रोत स्थान एक है 

जहाँ गंगा की सात धाराएं 

वो दोनों वहां गए हैं 

विदुर भी उनके साथ हैं जाएं। 


मार्ग में तुम विघ्न न करना 

पांचवें दिन शरीर त्यागें वो 

उपदेशों को ह्रदय में धर लिया

शोक हुआ ना फिर युधिष्ठर को। 


गांधारी और धृतराष्ट्र ने 

शरीर त्यागा, स्वर्ग गए वो 

उद्धव जी वहां से निकलकर 

तीर्थ यात्रा पर चले गए वो। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics