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Dinesh paliwal

Classics

4.5  

Dinesh paliwal

Classics

।। पांचाली ।।

।। पांचाली ।।

3 mins
445



महाभारत की कथा मुझ बिन ,

क्या होती पूरी या रहती खाली ,

द्रुपद सुता धृष्ट्द्युम्न की भगिनी ,

जग मुझ को है कहता पांचाली।


अग्नि से जन्मी थी मैं इस जग ,

पांचाल राज्य की राजकुमारी ,

कोख नहीं पायी माता की मैंने,

अयोनिजा थी मैं जग से न्यारी।


है सांवल रंग कुंतल से गेसू ,

मैं कमल नयनी गजगामिनी,

वेद व्यास ने रची थी ऐसी ,

कामिनी रूप धरी मैं दामिनी।


जन्म हुआ प्रतिशोध निहित

प्रतिशोध ही जीवन भर है पाला

पिता ने मांगा निज अहम हेतु

पतियों ने पण में तज डाला ।।


राजकुमारी थी मैं रचा स्वयंवर

वीरों ने कितने बाजू थे तोले

जिसने भेदी मीन और मन मेरा

वो मेरे स्वामी थे कितने भोले ।।


जो माँ ने समझा आयी है भिक्षा

कहा बाँट लो मिल पांचों भाई

एक बार न सोचा पार्थ ये तुमने

एक बार तुम्हें ना लज्जा आयी ।।


पत्नी बन कर आयी थी जो

उस को भिक्षा के जैसे था बाँटा

उस दिन जैसे मैं बंटी सोच उर

अब रह रह कर चुभता ये कांटा ।।


फिर आया वो दिन अनहोना

काल रच रहा था जिसका होना

धर्मराज जो कहते थे खुद को

उनका सब अधर्म द्यूत में बोना ।।


जब भाई अपने हार के चारों

जो दांव लगा खुद को भी डाले

हार चुके हों अस्तित्व जो अपना

हों वो पत्नी के कैसे रखवाले ।।


वहाँ धृतराष्ट्र तो नेत्र हीन थे

बाकी सब तो थे दृष्टी सज्जित

ना उद्वेलित था कोई भी परिजन

जब राजवधु होती थी लज्जित ।।


कोई महावीर कोई महाबली

कोई दृढ़ प्रतिज्ञ कोई कर्मी था

पर उस पल जो अन्याय देखता

था मेरा दोषी वो अधर्मी था ।।


हाँ दुर्योधन का उपहास किया

कर्ण का अहम भी चूर किया

जग सारा उसको क्या समझे

लगता बस स्त्री का चरित्र त्रिया ।।


जो कहा गया मुझको वैश्या था

जो भरे राज मैं लाज उतारी थी

मैं बस क्या थी पांडव पत्नी ही

ना तब रानी और राजकुमारी थी ।।


उस दिन ही मैंने ठान लिया था

इस कुरुवंश को मुझे मिटाना है

जो नारी का ना करते सम्मान यहाँ

उन्हैं अब उनका स्थान दिखाना है ।।


महाभारत की कथा क्यों लगती

गाथा पाण्डु पुत्र और कौरव की

जो देखो इसको तुम दृष्टी से मेरी

ये कथा है सिर्फ नारी गौरव की ।।


कुन्ती ने उस युग में भी देखो

चुन पिता किया पुत्रों को धारण

या सत्यवती मछुआरन वो जो

देवव्रत की प्रतिज्ञा का कारण ।।


या गाँधारी सी सखी वो नारी

जो अंधे के संग दी थी ब्याही

खुद नेत्र ज्योति ढक वस्त्रों से

जीवनभर पतिव्रता धर्म निबाही ।।


या बात सुभद्रा की हो जिसने

कोख से ही पुत्र को ज्ञान दिया

या फिर वो हो अंबा की जिसने

भीष्म मृत्यु को किन्नर जन्म लिया ।।


वो घटोत्कच की हो माँ हिडिम्बा

या भानुमति दुर्योधन की धरनी

कथा महाभारत की है इनसे भी

इनकी महिमा ना जग ने बरनी ।।


मैं द्रौपदी महाराज द्रुपद की पुत्री

पांच पांडवों की पत्नी पांचाली

करती घोषित इस जग को अब

महाभारत है मुझसे गौरवशाली ।।


त्याग,उपेक्षा,लज्जा,प्रतिशोध सभी

इन सब का मैं कुछ कारण हूँ

तुम कोई भाव परख कर देखो

सब में मैं बस एक उदाहरण हूँ ।।


मैं नायिका हूँ इस महा ग्रंथ की

बस उचित मुझे सम्मान मिले

मैं भी अनुजा हूँ माधव की तो

सब क्यों अर्जुन को मान मिले ।।


बाकी सब तो बस निमित्त मात्र

मैं इस महासमर की कारक हूँ

धरती पर सत्य विजय की मैं

हे कृष्ण संग तुम्हारे धारक हूँ

हे कृष्ण संग तुम्हारे धारक हूँ ।।


ये रचना पांचाली (द्रौपदी) के परिपेक्ष्य से महाभारत को समझने का प्रयास है। आशा है आप भी पांचाली के भावों को मेरी तरह समझ पायेंगे ।।



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