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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत-२५०; रुक्मिणी हरण

श्रीमद्भागवत-२५०; रुक्मिणी हरण

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श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित

संदेश सुनकर रुक्मिणी जी का

ब्राह्मण देवता का हाथ पकड़कर

श्री कृष्ण ने उनसे था कहा।


ब्राह्मण देवता, जैसे रुक्मिणी

मुझे चाहती, उसे चाहता मैं भी

जैसी मन की स्थिति उसकी वैसे ही

उसी में लगा हुआ मेरा चित भी।


रुक्मी ने द्वेशवश मेरा

विवाह रोक दिया अपनी बहन से

परन्तु मैं क्षत्रिय कुल कलंकों को हराकर

निकाल लाऊँगा उसको वहाँ से।


श्री शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित

श्री कृष्ण ने बुलाया दारूक को

कहा, रथ जोत कर लाओ

चल दिए फिर उसपर सवार हो।


ब्राह्मण देवता साथ में उनके

विदर्भ देश में जा पहुँचे वे

कुण्ड़िन नरेश महाराज भीष्मक

कन्या के विवाह की तैयारी कर रहे।


स्नान के बाद रुक्मिणी जी

आभूषणों से विभूषित हो गयीं

पिता दमघोष ने कराए

मंगलकृत शिशुपाल के लिए भी।


चतुरंगिणी सेना लेकर, बारात ले

कुंड़िलपुर में आ पहुँचे सभी

भीष्मक ने स्वागत किया उनका

बारात में शिशुपाल के मित्र भी।


शाल्व, जरासन्ध, दन्तवक्त्र

विदुरथ और पोणड़्रक आदि नरपति

शिशुपाल के सहस्त्रों मित्र ये

कृष्ण, बलराम के सभी विरोधी।


निश्चय कर रखा था उन्होंने

कि जो कृष्ण, बलराम वहाँ पर

आकर हरन करेंगे कन्या का

तो लड़ेंगे उनसे वो सब मिलकर।


इसलिए पूरी सेना भी लाए

इस बात का पता बलराम को चल गया

सोचा कृष्ण अकेले ही चले गए

उनके मन में युद्ध की आशंका।


यद्यपि कृष्ण का बल जानते थे वो

फिर भी हृदय भ्रातृभाव से

भर गया उनका और सेना लेकर

कुण्डिनपुर की और चल पड़े।


उधर रुक्मिणी प्रतीक्षा कर रही

शुभागमन का श्री कृष्ण के

मन आशंकाओं से भरा हुआ

सोचें अभी तो ब्राह्मण भी ना आए।


सोचें कहीं भगवान कृष्ण को

मुझमें कुछ बुराई तो नही दिखी

इसीलिए नही आए यहाँ

विधाता भी शायद मेरे अनुकूल नहीं।


इसी उधेड़ बुन में पड़ीं वो

उनके मनोभाव कृष्ण ने चुरा लिए

यही सोचते हुए उन्होंने

आंसू समेटे, नेत्र बंद किए।


उसी समय बायीं जाँघ, भुजा और

नेत्र फड़कने लगे थे उनके

जो कि प्रियतम के आगमन का

प्रिय संकेत थे सूचित कर रहे।


इतने में श्री कृष्ण के भेजे

ब्राह्मण देवता वहाँ आ गए

उनका मुख प्रफुल्लित था ऐसे 

रुक्मिणी जी ने जब देखा ये।


तब वे ये समझ गयीं कि

श्री कृष्ण आ गए हैं वहाँ

प्रसन्नता से खिलकर उन्होंने

ब्राह्मण देवता से पूछा था।


निवेदन किया ब्राह्मण देवता ने

कि पधार गए श्री कृष्ण यहाँ

बतलाया कि आपको ले जाने की

कृष्ण ने की है प्रतिज्ञा।


रुक्मिणी का हृदय आनंद से भर गया

नमस्कार किया तब ब्राह्मण को

अर्थात् जगत की समग्र लक्ष्मी

उन्होंने दे दी ब्राह्मण को।


राजा भीष्मक ने सुना कि

कृष्ण और बलराम पधारे

सोचा उत्सुकता वश हैं आए

मेरी कन्या का विवाह देखने।


विधिपूर्वक पूजा की उनकी

भीष्मक बड़े बुद्धिमान थे

भगवान के प्रति बड़ी भक्ति थी

यथावत सत्कार किया उनका उन्होंने।


विदर्भ देश के नागरिकों ने

सुना भगवान कृष्ण हैं आए

वहाँ पहुँच नयनों से कृष्ण का

मधुर रस पान करने लगे।


आपस में ये बात कर रहे

योग्य है रुक्मिणी इन्हीं के

और ये उसके योग्य हैं

इन्हीं की अर्धांगिनी बनें वे।


परीक्षित, उसी समय रुक्मिणी जी

देवी मंदिर के लिए चल पड़ीं

बहुत से सैनिक नियुक्त थे

रक्षा करने के लिए उनकी।


कृष्ण चंद्र का चिन्तन करती हुईं

भगवती सती जी का दर्शन करने

पैदल ही चल पड़ीं वो

मंदिर में प्रवेश तब किया उन्होंने।


बुड्ढी ब्राह्मणीयां साथ थीं जो, उन्होंने

प्रणाम कराया भगवती , शंकर को

आशीर्वाद माँगा रुक्मिणी ने

मेरी अभिलाषा पूर्ण हो।


भगवान कृष्ण मेरे पति हों

ऐसा कह पूजा की माता की

ब्राह्मणीयों की भी पूजा की उन्होंने

उन्होंने दिए उन्हें आशीर्वाद भी।


मोहित कर देने वालीं थीं

रुक्मणी बड़े बड़े वीरों को

कामदेव ने वहाँ आकर फिर

वाणों से बींधा उन नरपतियों को।


हृदय जर्जर कर दिया उनका

प्रभु का कार्य सिद्ध करने के लिए

बड़े बड़े नरपति और वीर

मोहित होकर बेहोश हो गए।


अस्त्र शस्त्र छूटे हाथों से

नीचे गिर पड़े रथ, घोड़ों से

रुक्मिणी धीरे धीरे चल रहीं

श्री कृष्ण की प्रतीक्षा करते हुए।


तभी कृष्ण के दर्शन हुए उन्हें

और जब वे रथ के पास थीं

शत्रुओं के देखते देखते कृष्ण ने

उठा लिया उनको भीड़ में से उनकी।


अपने रथ पर बैठा लिया उन्हें

गरुड़ का चिन्ह रथ की ध्वजा पर

बलराम आदि के साथ चल पड़े

रुक्मिणी जी को साथ में लेकर।


जरासन्ध और बाक़ी राजा जो

भारी अपमान महसूस हुआ उन्हें

तिरस्कार लगा अपना उनको

चिढ़कर सबके सब ये कहने लगे।


‘ अहो ! धिक्कार हम सबको

धनुष धारण कर खड़े हम रहे

और ये गवाले हमारा

सारा यश छीन ले गए ‘।


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