श्रीमद्भागवत - १४९ ;मन्वन्तरों का वर्णन
श्रीमद्भागवत - १४९ ;मन्वन्तरों का वर्णन
शुकदेव जी से पूछें परीक्षित
सुना वंश मैंने स्वयंभू मनु का
और उनकी कन्यायों की
थी जो भी वंश परम्परा।
वर्णन करें दूसरे मनुओं का
और जिस जिस मन्वन्तर में
भगवान ने जो लीलाएं कीं
उसे आप वर्णन कीजिये।
शुकदेव जी कहें, हे परीक्षित
बीत चुके हैं इस कलप में
स्वायम्भुवमनु आदि छ मन्वन्तर
पहले का वर्णन कर दिया, उनमें से।
स्वायम्भुव्मनु की पुत्री आकुति से
धर्म का उपदेश करने के लिए
पुत्र रूप में अवतार ग्रहण किया
भगवान ने यज्ञपुरुष के रूप में।
हे परीक्षित, स्वायम्भुव मनु ने
विरक्त हो छोड़ा भोगों को
शतरूपा के साथ तपस्या करें
और भगवान् की स्तुति करें वो।
नींद में अचेत होकर
बड़बड़ाता जान उन्हें, टूट पड़े थे
भूखे राक्षस और असुर वहां
उनको खा डालने के लिए।
यह देखकर भगवान यज्ञ पुरुष
पुत्र याम आदि के साथ में
वहां आये, असुरों का संहार किया
स्वर्ग पर फिर शासन करने लगे।
स्वारोचिष दूसरे मनु हुए
पुत्र थे वो अग्नि के
द्युमान, सुषेण और रोचिष्मान आदि
उनके पुत्रों के नाम थे।
रोचन नाम था इंद्र का
इस दूसरे मन्वन्तर में
तुषित आदि प्रधान देवता
उर्जस्तम्भ आदि सप्तरिषि थे।
उस मन्वन्तर में वेद्शिरा नाम के
ऋषि थे, उनकी पत्नी तुषिता थीं
भगवान ने अवतार लिया उनके गर्भ से
विभु नाम से हुई प्रसिद्धि उनकी।
वो आजीवन नैष्ठिक ब्राह्मण रहे
शिक्षा ग्रहण कर उनके आवरण में
ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया
अठासी हजार व्रतनिष्ठ ऋषिओं ने।
उत्तम ही तीसरे मनु थे
प्रियव्रत के पुत्र थे वे
पवन, सृंजय, यज्ञहोत्र आदि
ये उन मनु के पुत्र थे।
प्रमद आदि सात पुत्र वशिष्ठ के
उस मन्वन्तर के सप्तरिषि थे
सत्य, वेदश्रुत और भद्र
देवताओं के प्रधान गण थे।
सत्यजित इंद्र का नाम था
और धर्म की पत्नी सूनृता से
भगवान् ने अवतार ग्रहण किया
सत्यसेन के नाम से।
सत्यव्रत नाम के देवगण भी
उस समय उनके साथ थे
यक्षों, राक्षसों का संहार किया
इंद्र के सखा बनकर भगवान् ने।
चौथे मनु का नाम था तापस
वो तीसरे मनु उत्तम के भाई थे
पृथु, ख्याति, नर, केतु आदि
उनके ये दस पुत्र थे।
देवताओं के प्रधान गण
सत्यक, हरि और वीर नाम के
इंद्र का नाम त्रिशिख
ज्योतिर्धाम आदि सप्तरिषि थे।
तापस नाम के उस मन्वन्तर में
विधृति के पुत्र वैधृति नाम के
और भी देवता हुए जिन्होंने
वेदों को बचाया अपनी शक्ति से।
उन्होंने समय के फेर से
नष्टप्राय वेदों को बचाया
वैधृति कहलाये वो
इसीलिए उनका ये नाम पड़ा।
हरिमेघा ऋषि की पत्नी हरिणि के
गर्भ से हरि के रूप में
भगवान ने अवतार ग्रहण किया
रक्षा की गजेंद्र की उन्होंने ग्रह से।
राजा परीक्षित ने पूछा मुनिवर
सुनना चाहता हूँ मैं ये
भगवान् ने गजेंद्र को
कैसे बचाया ग्रह के फंदे से।
सूत जी कहें, शौनकादि ऋषिओ
आमरण अनशन करें परीक्षित जी
और वहां बैठे हम भी थे
भगवान की कथा सुनने के लिए ही।
इस प्रकार प्रेरित करने पर
शुकदेव जी बड़ा आनंदित हुए
अभिनन्दन कर तब परीक्षित का
मुनियों से भरी सभा में कहने लगे।