श्रीमद्भागवत -१३ ; कुंती की स्तुति और भीषम का प्राणत्याग
श्रीमद्भागवत -१३ ; कुंती की स्तुति और भीषम का प्राणत्याग
द्रोपदी के साथ में कुंती
कृष्ण की तब स्तुति करे हैं
विपतिओं में रक्षा की हमारी
हमारे सारे दुःख हरे हैं।
आती रहे विपतियां हमपर
आपके दर्शन हैं हो जाते
आप कृपा करते हैं जब
संसार के बंधन सब छुट जाते।
महान कीर्ति है आपकी
आप अजन्मे, बस लीला करते
कहते हैं सभी भगवान आपको
आप लोगों का दुःख हैं हरते।
हमें छोकर जाना चाहें
आपके बिना ना अस्तित्व हमारा
कृपा कीजिये मन में मेरे
सदा रहे ध्यान तुम्हारा।
मंद मंद मुस्काये कृष्ण थे
रुक गए कुंती की विनती पर
युधिष्ठर व्याकुल हो रहे थे
भाईओं के मरने का शोक कर।
कृष्ण ने कई इतिहास सुनाये
कई तरह से था समझाया
पर वो शोक मिटा न उनका
मन शांत नहीं हो पाया।
युधिष्ठर सोचें सब सेना मर गयी
किस किस को मैंने दुःख दिया है
ब्राह्मण, मित्र, सम्बन्धी, गुरुजन
मैंने सबका द्रोह किया है।
प्रजाद्रोह से भयभीत हो सोचें
ज्ञान प्राप्ति कैसे पाएं
भीष्म शवशय्या पर पड़े जहाँ
कुरुक्षेत्र में तब वो जाएं।
साथ में व्यास जी और कृष्ण भी
और भाई उनके थे सारे
प्रणाम किया भीष्म को सबने
ब्रह्मऋषि, देवऋषि पधारे।
भीष्म प्रभाव कृष्ण का जानें
उनकी पूजा की थी ह्रदय में
पांडव उनके पास बैठ गए
अश्रुधारा उनकी आँखों में।
भीष्म युधिष्ठर को समझाएं
ईश्वर इच्छा से होता सब है
करो तुम्हारा धर्म है जो
वो प्रजा का पालन अब है।
श्री कृष्ण साक्षात् भगवान हैं
जिनको तुम भाई, परम हितु मानो
तुम समझो जिनको प्रिय मित्र
उन कृष्ण को तुम परमात्मा जानो।
अपने भक्तों पर कृपा करें वो
मुझे दर्शन दिए, मृत्यु शय्या पर
सभी ऋषिओं को भी धर्म बताएं
ज्ञान वर्षा फिर की थी उनपर।
तभी उत्तरायण का समय आया
सब कुछ छोड़, कृष्ण ध्यान करें
कृष्ण कृपा से भीषम जी तब
चतुर्भुज रूप का दर्शन करें।
शस्त्र की पीड़ा ख़त्म हो गयी
स्तुती की और प्राण त्याग दिए
प्रभु ने उनको मुक्ति दी थी
कृष्ण में वो थे लीन हो गए।
युधिष्टर ने उनकी अंत्येष्टि की
हस्तिनापुर फिर लौट आये वो
गांधारी, धृतराष्ट्र के वो पास गए
दोनों को ही समझाएं वो।
धृतराष्ट्र की आज्ञा पाकर
प्रजा की सेवा में लग गए
कृष्ण से वो अनुमति लेकर
धर्मपूर्वक शासन करने लगे।