श्रीमद्भागवत -११३ ; नर्क की विभिन्न विभिन्न गतिओं का वर्णन -भाग 1
श्रीमद्भागवत -११३ ; नर्क की विभिन्न विभिन्न गतिओं का वर्णन -भाग 1
राजा परीक्षित पूछें, हे महर्षे
लोगों की जो हैं ये गतियां
अलग अलग प्राप्त हों सबको
इनमें इतनी है क्यों विभिन्नता।
शुकदेव जी कहें, हे राजन
कर्म करने वाले पुरुष जो
सात्विक, राजस और तामस
तीन प्रकार के होते हैं वो।
स्वाभाव और श्रद्धा के भेद से
गतियां भिन्न भिन्न हैं होतीं
ऐसे ही समान फल न मिले
पाप करने वालों को भी।
उन निषिद्ध कर्मों कार्यों के परिणाम से
नरक की गतियां जो होतीं हैं
हजारों तरह की उन गतिओं का
विस्तार से अब वर्णन करते हैं।
राजा परीक्षित ने पूछा, भगवन
करना चाहते आप जिसका वर्णन
नर्क वो त्रिलोकी के बाहर हैं
या किसी जगह इसी के भीतर।
शुकदेव जी कहें, हे राजन
ये त्रिलोकी के भीतर ही हैं
दक्षिण में पृथ्वी के नीचे
और जल के ऊपर स्थित हैं।
अग्निष्वात आदि पितृगण
रहते हैं इसी दिशा में
एकाग्र पूर्वक अपने वंशधरों की
मंगलकामना किया हैं करते।
पितृराज भगवान यम जो
पुत्र हैं सूर्य भगवान के
अपने सेवकों के साथ में रहते
वो वहां उस नर्क लोक में।
दूतों द्वारा वहां लाये गए
उन सभी मृत प्राणियों को
उनके दुष्कर्मों के अनुसार ही
पाप का फल, दंड देते वो।
राजन, उन नरकों की संख्या
इक्कीस बताते, लोग कोई कोई
हम इनका वर्णन करेंगे
इनके रूप, लक्षणों के अनुसार ही।
इन इक्कीस नरकों के इलावा
सात और नर्क बतलाते
कुल अठाइस नर्क, तरह तरह के
यातनाओं को भोगने के स्थान ये।
जो पुरुष हरण करते हैं
दूसरों के धन, संतान, स्त्री का
काल पाश में यमदूत ले जाते उसे
तामिस्त्र नर्क में वो है गिरता।
उस अंधकारमय नर्क में
उसको है पीड़ित किया जाता
भय दिखाते, डंडे मारते
अन्न, जल भी नहीं मिल पाता।
इसी प्रकार धोखा देकर जो
पुरुष दूसरे की स्त्री को भोगता
अंध तामिस्त्र नर्क में जाकर
कटे वृक्ष समान हो जाता।
वहां की यातनाओं में पड़कर
वेदना के मारे सुध बुध खो बैठे
कुछ न सूझे उसे ,इसीलिए इसको
अंध तामिस्त्र नर्क हैं कहते।
जो पुरुष द्रोह करे दूसरे प्राणियों से
पालन पोषण करे बस कुटुम्ब का
शरीर छोड़ने पर पाप के कारण
रौरव नर्क में वो गिरता।
इस लोक में जिन जीवों को
उसने कष्ट पहुँचाया जैसे
परलोक में जीव वो रुरु होकर
कष्ट पहुंचाएं उसको भी वैसे।
रुरु एक जीव है जिसका
स्वभाव क्रूर है सर्पों से भी
रौरव नामक नाम पड़ा है
उसी जीव के कारण ही।
महारौरव नर्क भी ऐसा ही है
वहां व्यक्ति जाता है वो
अपने शरीर का ही पालन पोषण करे
किसी और की परवाह न करे जो
रुरु जो कच्चा मांस हैं खाते
मांस के लोभ में वो हैं काटते
रांघता जो जीवित पशु पक्षिओं को
यमदूत कुम्भीपाक नर्क में डालते।
वहां राँधते खोलते तेल में
तब कष्ट उठता बहुत ये
माता, पिता, ब्राह्मण का विरोधी जो
यमदूत ले जाते कालसूत्र नर्क में।
इसका घेरा दस हजार योजन है
इसकी भूमि है ताम्बे की
जलता रहता वो अग्नि के दाह से
नीचे धरती, ऊपर सूर्य में भी।
वहां पड़कर पापी जीव ये
भूख प्यास से व्याकुल हो जाता
बेचैनी बढ़े, छटपटाये वो
कभी बैठता, कभी खड़ा हो जाता।
नर पशु के शरीर में
जितने रोम होते हैं उतने ही
हजार वर्ष तक उस जीव की
होती रहती वहां है दुर्गति।
वैदिक धर्मों को छोड़कर
आश्रय लेता जो पाखंड धर्मों का
अशिपत्रवन नामक नर्क ले जाकर
कोड़ों से पीटें हैं यमदूत वहां।
जब मार से बचने के लिए
इधर उधर वो लगता दौड़ने
टूक टूक होने लगते अंग उसके
तलवार समान पैने पत्तों से।
अत्यंत वेदना से चिल्लाता हुआ
गिरने लगता मूर्छित होकर वो
छोड़ धर्म, पाखंड मार्ग में चलने से
अपने कर्मों का फल भोगे वो।
राजा या राजकर्मचारी होकर
दण्ड देता जो निरपराध मनुष्य को
या ब्राह्मण को शारीरिक दंड दे
गिरता सूकरमुख नर्क में वो।
यमदूत उसके अंगों को कुचलते
गन्ने समान ही पेरे जाते हुए
पीड़ित हो वो चिल्लाता रहता
चिल्लाते थे जैसे उसके सताए हुए।
जो पुरुष है हिंसा करता
खटमलादि जीवों से इस लोक में
द्रोह करने के कारण वो
गिरता अंधकूप नर्क में।
क्योंकि रक्तपानादि वृति उनकी
बनाई स्वयं भगवान ने ही
पहुंचे कष्ट दूसरों को इससे
इसका उनको ज्ञान भी नहीं।
किन्तु विधि-निषेध पूर्वक
वृति बनाई है मनुष्य की
ज्ञान है उनको वो जाने हैं
पीड़ा दूसरों के कष्ट की।
उस नर्क में वे मृग, पक्षी, सांप आदि
मच्छर, जूं , खटमल, मक्खी जो
जिनसे द्रोह किया था उसने
सभी और से काटते उसको।
निद्रा और शक्ति भंग हो जाती
बेचैनी के कारण तब वह
भटकता रहता है जैसे कि
रोगग्रस्त जीव छटपटाता है।
जो मनुष्य बिना पंचमहायज्ञ किये
खा लेता है जो कुछ मिले उसे
बिना दूसरे को दिए हुए
कीड़े समान कहा गया उसे।
परलोक में कृमिभोजन नामक
निकृष्ट नर्क में गिरता
एक हजार योजन लम्बा
एक कीड़ों का कुण्ड है वहां।
कीड़ा बन कर वहां रहना पड़ता
जब तक पापों का प्रायश्चित न हो जाये
बिना दिए बिना हवन किये खाने के
दोष का शोधन न हो जाए।
तब तक वो पड़ा रहता है
उसी कुण्ड में कष्ट भोगता
वहां कीड़े हैं उसे नोचते
और कीड़ों को ही वो खाता।