दण्ड
दण्ड
दण्ड
दासी एक राजमहल की
सारा दिन परिश्रम कर थकी थी वो
राजा के पलंग पर लेट गई
पल में निद्रा ने घेर लिया उसको ।
कुछ देर में राजा वहाँ आया
देखा दासी सो रही बिस्तर पर
क्रोधित हुआ, बुलाया दरबान को
कहा ले जाओ इसे क़ैद कर ।
अगले दिन सभा में राजा बैठा
दासी हथकड़ियों में खड़ी थी
दस कोड़ों की सजा दी उसको
लोगों की वहाँ भीड़ बड़ी थी ।
पहला कोड़ा लगा, कराह उठी
दूसरा कोड़ा तैयार लगने को
एकाएक देखा लोगों ने
खिलखिलाकर हंस पड़ी वो ।
राजा ये देख
बड़ा विस्मित हुआ
पूछा उसने तू क्यों हँसती
बोली दासी, राजन! मेरे मन में
एक विचार आया है अभी अभी ।
कि मैं तो इस मखमली बिस्तर पर
बस पलभर के लिए ही सोयी
दस कोड़े मुझे सजा मिली इसकी
पहले कोड़े में बहुत मैं रोई ।
परंतु तुम तो हर रोज ही
इस बिस्तर पर वर्षों से सोते
ना जाने कितना दण्ड मिले
थक जाओगे तुम तो रोते रोते ।
राजा को भी अब ज्ञान हो गया
दासी को मुक्त किया उसने
राजपाठ पुत्रों को देकर
छोड़ छाड़ सब चला गया वन में ।
अजय सिंगला
