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Ajay Singla

Inspirational

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Ajay Singla

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दण्ड

दण्ड

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दण्ड 


दासी एक राजमहल की 

सारा दिन परिश्रम कर थकी थी वो

राजा के पलंग पर लेट गई

पल में निद्रा ने घेर लिया उसको ।


कुछ देर में राजा वहाँ आया 

देखा दासी सो रही बिस्तर पर 

क्रोधित हुआ, बुलाया दरबान को 

कहा ले जाओ इसे क़ैद कर ।


अगले दिन सभा में राजा बैठा 

दासी हथकड़ियों में खड़ी थी 

दस कोड़ों की सजा दी उसको 

लोगों की वहाँ भीड़ बड़ी थी ।


पहला कोड़ा लगा, कराह उठी 

दूसरा कोड़ा तैयार लगने को 

एकाएक देखा लोगों ने 

खिलखिलाकर हंस पड़ी वो ।


राजा ये देख 

बड़ा विस्मित हुआ 

पूछा उसने तू क्यों हँसती 

बोली दासी, राजन! मेरे मन में 

एक विचार आया है अभी अभी ।


कि मैं तो इस मखमली बिस्तर पर 

बस पलभर के लिए ही सोयी 

दस कोड़े मुझे सजा मिली इसकी 

पहले कोड़े में बहुत मैं रोई ।


परंतु तुम तो हर रोज ही 

इस बिस्तर पर वर्षों से सोते 

ना जाने कितना दण्ड मिले 

थक जाओगे तुम तो रोते रोते ।


राजा को भी अब ज्ञान हो गया 

दासी को मुक्त किया उसने 

राजपाठ पुत्रों को देकर 

छोड़ छाड़ सब चला गया वन में ।


अजय सिंगला


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