सौभाग्य
सौभाग्य
सौभाग्य
चक्रवर्ती राजाधिराज जी
सिंहासन पर विराजमान थे अपने
परमज्ञानी एक संत आया वहाँ
राजा ने प्रणाम किया उन्हें ।
संत कहें, आयुष्मान भव:
जो मांगना चाहो माँग लो
कहे राजा सब कुछ प्राप्त है
अब कोई इच्छा ना मुझको ।
प्रन्तु फिर भी आप कह रहे
तो जानना चाहता क्या मुझे मिल सके
सबसे बड़ा सौभाग्य जगत का
जो भी है, क्या वो है मेरे लिए ।
संत कहें कि प्रथम सौभाग्य जो
चाहकर भी ना मिल सके तुमको
दूसरा सौभाग्य मिल सके
पर उसे तुम लेना ना चाहो ।
विस्मित हो राजा कहे संत से
दूसरा सौभाग्य क्या है बतलाओ
पहला सौभाग्य क्यों ना मिल सके
इसका राज मुझे समझाओ ।
विनम्र वाणी में संत थे बोले
दूसरा सौभाग्य पहले सुन लो
तत्काल मृत्यु हो जाए तुम्हारी
इस जन्म के चक्र से छूटो ।
राजा बोला मैंने मान लिया कि
इस सौभाग्य को लेना चाहूँ ना
परंतु मन में प्रश्न उठ रहे
क्या है फिर सौभाग्य पहला ।
हंसते हुए बोले संत वो
पहले सौभाग्य का समय निकल गया
छूटे होते जन्मों के चक्र से
ये जन्म ही तुम्हारा ना होता ।
गूढ़ रहस्य, ज्ञान की बातें ये
इनको ना समझ सकें हम अज्ञानी
बहुत सरल कभी और कभी कभी
समझ ना आए संतों की वाणी ।
अजय सिंगला
