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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

"श्री राम को बारम्बार प्रणाम"

"श्री राम को बारम्बार प्रणाम"

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प्रभु श्री राम को बारंबार प्रणाम

आपने मिटाया सदा, तम तमाम

जो भी लेता श्री राम का नाम

वो पाता बाला कृपा, आठोयाम


जड़, चेतन, अग्नि, नभ, जल, वायु

राम बिना है, हर चीज निष्प्राण

जिस चीज से निकल जाये राम

उसका हो जाता है, काम तमाम


त्रेतायुग में, चैत्र शुक्ल नवमी को,

अयोध्या में, दशरथ घर जन्मे राम

खुशियां छाई, खिले मुखड़े तमाम

जले दीप घर-घर, जैसे प्रकटे राम


बचपन मे विश्वामित्र बुलावे पर

तड़ाका का खत्म किया, निशान

प्रभु श्री राम को बारम्बार प्रणाम

आप चराचर जगत राजा हो राम


सीतास्वयंवर में, आपने ही श्री राम

राजाओं का तोड़ा था, घमंड तमाम

शिवधनुष को यूँ तोड़ा, आपने राम

जैसा वो हो कोई फुलवारी आम


आप बने स्वयंवर बाद, सियाराम

प्रभु श्री राम को बारंबार प्रणाम

सगुण भी आप, निर्गुण भी आप

जो जैसा जपे, वैसा देते दर्श राम


खेल में सदा जीताते, भाईयों को

सरल सौम्य, स्वभाव के श्री राम

पितृ आज्ञा को माना, चले आप

निज पत्नी, भाई सहित वनवास


चौदह वर्ष के इस वनवास में,

अनेक दैत्यों की छीन ली शाम

खर-दूषण को सेनासहित मारा

मारीच, कंबध को दिया विश्राम


पत्थर की शिला छूकर श्री राम

आपने किया अहिल्या का उद्धार

शत्रु को भी देते आप अभयदान

अगर आ जाये वो, शरण स्थान


तीन दिन तपस्या किन्ही श्री राम

सागर ने न दी कोई राह, श्री राम

राम ने उठाया धनुष चढ़ाया चाप

पर शरणागतवत्सल है, प्रभु राम


त्राहि माम् करता आया, सिंधु

कर दिया उसे माफ श्री राम

पत्थर सेतु बनाया, वानर सेना ने

चले रावणवध को प्रभु श्री राम


रावण को अहंकार था, इतना

सागर में नही है, पानी जितना

कुंभकर्ण, रावण को पहुंचाया,

आपने ही भगवन निज धाम


हनुमानजी आपके भक्त निराले

जहां भी होते, श्री राम के जयकारे

वहां रहते सदैव ही, बालाजी हमारे

रामकथा प्रिय, सियाराम के दुलारे


असत्य, अंधेरे का न चलता नाम

जहां होती है, रामधुनी, सुबह-शाम

पर आज संस्कृति गिर रही, धड़ाम

कम करती, रामधुनी आज अवाम


आज जरूरत है, राम आदर्शों की,

हर जगह हो रही मानवता, बदनाम

बाहर नही भीतर ही है, साखी राम

सत्य, नेकी, ईमानदारी में बसे है, राम


जो सत्कर्म करता जीवन मे तमाम

उसके लिये हर जगह राम ही राम

काम, क्रोध, मद, आदि को न दे स्थान

उसके लिये कलयुग सतयुग समान


प्रभु श्री राम को बारम्बार प्रणाम

आप हो प्रभु शबरी के दाता राम

जो न करे, कोई भेदभाव वो है, राम

आप समान न कोई दयालु, श्रीराम।


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