श्राद्ध के भूखे सुन
श्राद्ध के भूखे सुन
सुन रे कौवे
मेरी सुन
ओ श्राद्ध के भूखे सुन !
इतना ना इतरा
कागोश के मेरे निमंत्रण पर,
दुनियावी मजबूरी पर मेरी
इतनी न हेकड़ी दिखा
तू जानता है अच्छे से
कि इतना मान तो हमने
जीते-जी न दिया पुरखों को
प्रीत का तर्पण
अपनी समझ के साथ ही कर दिया था
नेह का ग्रास
और सम्मान की थाली
सदा कल्पनातीत रही
मृत आत्माओं के जीवन-काल में भी
श्राद्ध परंपरा की
हमारी लौकिक मजबूरी को
इतना न भुना रे काले
वरना श्राद्ध-पक्ष के बाद
तेरा क्या हश्र होगा
जानता है ना तू !
छोड़ यह नौटंकी अब
और खा ले खाना है तो
वरना पिंजरे में बंद कौए के आगे
फैंक आऊंगा यह कागोश !
सुन रे काले कौए
कागोश !
कागोश !