शमा-परवाना
शमा-परवाना
जलने लगा परवाना तो लहरा के बोली यूं शमा
मेरी जान तेरी जान में ही बसी है ,कैसे तेरी जान लूं।
शमां जलती रही शब-भर किसी ने ख़ैर ना पूछी
जब जला परवाना आग में तो शमा बदनाम हो गई।
रूठ गया परवाना उससे जब शमा बुझने लगी ,
जाओ तुम से अब ना करेंगे हम दिल की बातें ।
शमां ने कहा परवाने से मेरे घर ना आया करो,
खफ़ा हो गया ना जान पाया उसकी मोहब्बत को।
बुझ गई शमां कहीं रूसवा ना कर लें ज़माना,
लोगों को तो आदत है जलती का धुआं देखने की।
सुलग रही हूं अंदर ही अंदर कोई जान ना ले राज़ मेरा,
होकर के फ़ना मैं जलती हूं अब भी परवाने के लिए।
कहां किसी को मिली इस जहां में मुकम्मल मोहब्बत,
कभी परवाना तड़पता रहा तो कभी शमां जलती रही।