शिक्षक के मन से
शिक्षक के मन से
हे गुरू जो ज्ञान मैं बाँट रहा
वो तेरा ही है मैं माध्यम हूँ बस।
मैं जहाँ पर खड़ा हूँ जरूर
वो जगह भी तेरी मैं प्रतिकृति बस।
सीखा तुझसे जीवन निर्माण करना
शिक्षा वो तेरी मैं संवाद हूँ बस।
तेरे पद चिह्नों का अनुसरण करता
तू मंज़िल है मैं तो मार्ग हूँ बस।
जानता हूँ गुरू के महत्व को,
गुरू तू ही मैं आज भी शिष्य बस।
तेरी मशाल को लेकर चलता रहूँ
तू प्रेरणा मेरे लिए मैं पथिक हूँ बस ।
मुझे पुरस्कार की अभिलाषा नही
कोशिश इतनी कि तेरा मान रहे बस।
मैं सीख रहा आज भी शिक्षक होना
सफल रहूँ इतना आशीष दे बस।
