STORYMIRROR

Manju Saini

Tragedy

4  

Manju Saini

Tragedy

शीर्षक:लहरों सा शोर

शीर्षक:लहरों सा शोर

1 min
361

अंदर एक अनकहा सा शोर हैं मेरे

ठीक वैसे ही जैसे समुद्र की लहरों का

टीस की लहरें भीतर ही उठती हैं

लगता है कभी की बांध तोड़ आएंगी बाहर

उन्हीं मचलती लहरों के शोर मेरे भीतर


साथ बहुत है मेरे अपने पर फिर भी

अकेलेपन ने ठिकाना बनाया हुआ है

कहने को बेशुमार प्यार है सबको मुझसे

पर मेरे भीतर एक टीस सी है और

उन्हीं मचलती लहरों के शोर मेरे भीतर


मेरे इस टीस की व्याख्या हो नहीं सकती

शब्दों में चाहते हुए भी उसको बयां नहीं कर पाती

मानो एक मजबूत सी गांठ सी बंधी हो मेरे संग  

बंध नहीं सकता क्योंकि टीस की पीड़ा असहनीय हैं

उन्हीं मचलती लहरों के शोर मेरे भीतर



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy