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Praveen Gola

Tragedy

3  

Praveen Gola

Tragedy

शिद्दत ~ए ~चाहत

शिद्दत ~ए ~चाहत

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शिद्दत ~ए ~चाहत पर ज़ोर किसका चलता है,

वो चले गए फिर भी इतना चाहते - चाहते,

हमें ये इल्म था कि अपनी चाहत में कोई कमी नहीं,

कोई बता दे चाहत की हद ~ए ~ सीमा इस ज़हां में।

अब जी भर गया रँग ~ ए ~ महफ़िल से यारों,

वो जो कभी अपने थे वो अब रूठ के चले गए,

ऐसा नहीं कि हमने रोका ना उन्हें,

ज्यादा चाहत से वो ख़फा होते गए।


चाहना उनको दिल ~ए ~जान से था कसूर अपना,

ठुकराना हमको दिलों ~ए ~जान से था दस्तूर उनका,

तय नहीं था दोनों के बीच ये कि कितना चाहें,

हमारी हार से भरता था दिल ~ए ~सुकून उसका।

चाहो इतना दूसरे को कि वो आज़ाद रहे,

जब कभी जाना चाहे तो हँस के जाए भले,

ज्यादा चाहत अक्सर ज़ख्मों को हरा करती,

तमाम उम्र वो फिर ना मिलने की दुआ करती।


अक्सर तन्हाई में अपनी चाहत का हम गम मनाते,

अपने बहते हुए अश्रुओं को अक्सर यही समझाते,

कि शिद्दत ~ए ~चाहत पर ज़ोर किसका चलता है,

वो चले गए फिर भी इतना चाहते - चाहते।।



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