शब्दों के परे की दुनिया
शब्दों के परे की दुनिया
कभी कभी लगता है कि कोई बात ना करूं
लेकिन बातें कभी खामोश रह सकती है भला?
बहुत बार खामोशी ही कितना कुछ कह देती है
बल्कि कई बार वह सन्नाटे को चीर कर बोलती है
बातें भी किस्म किस्म की बातें करती है
कभी आधी अधूरी तो कभी पूरी पूरी
आधी अधूरी बातें शब्दों के परे भी बातें कहती है
हाँ, शब्दों के परे की दुनिया कही ज्यादा गहरी होती है
संवेदना भी शब्दों के परे होती है
क्या संवेदना शब्दों की मोहताज होती है?
कभी एक आलिंगन से ही वह रूह से रूबरु बातें करती है
उस रिश्तें में जादुई असर का नशा घोल देती है
शब्दों के परे की दुनिया मे कभी निगाहों से बात होती है
तो कभी वे नज़रों से इशारे देती रहती है
अल्फ़ाज़ की तरह फिर ज़ज़्बात भी बात करने लगते हैं।