STORYMIRROR

Prafulla Kumar Tripathi

Abstract

3  

Prafulla Kumar Tripathi

Abstract

शब्द भी कंगाल हैं !

शब्द भी कंगाल हैं !

1 min
237

किस तरह अभिव्यक्ति होगी वेदना,

अब शब्द भी कंगाल है।

जब से ओझिल हो गये हैं तेरे नैना,

अश्रु इतने बह चुके ज्यों ताल है।


तेरे रुप की दूधिया थी चांदनी,

तेरे रंग से रौशनी खुशहाल है।

तेरे होठों पर खिली जो लालिमा,

मेरी हर इक सुबह के पैगाम है।


उम्र कितनी बीतती जाती मगर,

कसक दिल की हर घड़ी जवान है।

एक पल तुम भेज दो मुझको निमंत्रण,

समझ लूंगा ख़ुदा मेहरबान है।


धीर था मैं तुमको देखा तो सनम,

ग़म में उतने ही बने अधीर है।

इश्क की बाज़ी है अपनी दांव पर,

तेरी चुप्पी शब्द भेदी तीर है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract