शायरी सिखकर
शायरी सिखकर


शायरी सीखकर लिखने का खेल नहीं तनहा,
ये कुछ दुनियादारी है और कुछ बीते लम्हों का बवंडर।
शायरी के पौधे खाद से पनपा नहीं करते,
कोई ईद का चाँद है तो कोई दिन का आफताब।
शायरी हर किसी के जिस्म से फुटा नहीं करती,
ये कहीं बहता लावा है तो कहीं दर्द का समन्दर।