शायद अब नहीं
शायद अब नहीं
जान था वो मेरी, पर शायद अब नहीं
टूट कर चाहा था उसे , पर शायद अब नहीं !
हर पल बस उसका ही ख्याल था,
पर शायद अब नहीं
कभी जाना नहीं उसका-
वो कौन है, कहाँ से आया है ,क्या करता है ?
बस हर वक्त उसकी ही चाह /तड़प थी,
पर शायद अब नहीं।
एक नज़र भी अगर वो आँखों से ओझल हो जाये,
तो मानो जान चली जाती थी, पर शायद अब नहीं
ऊँगली में एक छोटी सी चोट भी आ जाये उसे
तो सांस रुक सी जाती थी मेरी पर शायद अब नहीं !
ये तो नहीं पता क़ि अब वो प्यार रहा या नहीं
पर अब शायद वो नहीं रहा,
जो कभी टूट कर किया था उससे।
ना जाने फिर से वो प्यार कभी होगा
या नहीं जो सिर्फ तुझसे किया था।
ना जाने फिर से वो तड़प कभी होगी
या नहीं जो सिर्फ तेरे लिए थी।
ना जाने फिर कभी वो उस
उड़ती पतंग क़ी तरह
हवा में लहर पायेगी या नहीं।