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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Classics Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Classics Inspirational

शांति की भ्रांति

शांति की भ्रांति

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भौतिक साधन हमको सुख देंगे

यह तो बस है एक झूठी सी भ्रांति।

सुख पाता एक जन जिस साधन से,

हो सकता है दूजे को न दे पाए शांति।


बालक एक है खुश होता लेकर के गुब्बारा,

और खुश होता है उसे बेचकर दूजा बेचारा।

खुश एक हो जाता इस गुब्बारे को ही फोड़कर,

जिसका फूटता उसके मन में भड़कती है क्रांति।


भौतिक साधन हमको सुख देंगे

यह तो बस है एक झूठी सी भ्रांति।

सुख पाता एक जन जिस साधन से,

हो सकता है दूजे को न दे पाए शांति।


जीवन सुखद बनाने के हित

 करते हैं हम विविध प्रयास।

'वे दिन कितने ही अच्छे थे ?'

अतीत याद कर हो जाते उदास।

बचपन के शाही दिनों वाली तो,

जीवन में नहीं मिल पाती शांति।


भौतिक साधन हमको सुख देंगे

यह तो बस है एक झूठी सी भ्रांति।

सुख पाता एक जन जिस साधन से,

हो सकता है दूजे को न दे पाए शांति।


लाख जतन हम सब करते हैं पर,

तृष्णाएं न होती हैं कभी पूरी।

मन तो सदा ही दुखी रहता है,

एक पूरी होते ही नयी कई अधूरी।


बढ़ती रहती है मन की बेचैनी,

कभी न आती है स्थाई शांति।

भौतिक साधन हमको सुख देंगे

यह तो बस है एक झूठी सी भ्रांति।

सुख पाता एक जन जिस साधन से,

हो सकता है दूजे को न दे पाए शांति।


बंटाएंगे सबके गम और बांटेंगे निज खुशियां,

घटेंगे सब ग़म और होगी खुशहाल ही दुनिया।

बाहरी साधन सुख न देते लाख जतन करने से,

सच्चा सुख होता जब,है खुश निज मन की मुनिया।


अंतर्मन के भाव पर ही आश्रित होती है,

सबके मन की क्रांति और शांति।

भौतिक साधन हमको सुख देंगे

यह तो बस है एक झूठी सी भ्रांति।

सुख पाता एक जन जिस साधन से,

हो सकता है दूजे को न दे पाए शांति।


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