सफ़र
सफ़र


एक अनजान से सख्स के शहर तक गए।
हम खुद अपनी बर्बादी की सफर तक गए।।
वो मुस्कराये और यूं लगा की ये मोहब्बत है।
हमे कहा पता था कि हम ख़ंजर तक गए।।
सुना था कत्ल वो आंखों से किया करते है।
हम देखने नयन का कहर नजर तक गए।।
प्यास तो हमे महज पानी की ही लगी थी।
अरे, जानबूझकर हम खुद जहर तक गए।।
देखने हम उनकी सिर्फ एक ज़लक के लिए।
सुनो, हम अपने ही जनाजे की खबर तक गए।।
साहब, वो बेवफ़ा हो के भी ख़ुदा बन गए।
और हम, हम बेगुनाह थे सो कब्र तक गए।।