सफ़र
सफ़र
ऐ मेरे सफर के रहियो
एक दिन ये सफर भी नहीं होगा और यह जिंदगी भी नहीं।
मैं इसलिए नहीं चलता कि मुझे तुम्हें दिखाना है
मैं इसलिए चलता हूंँ कि ये रास्ता कुछ अंजाना है।
मिलेंगे तुमसे राही और तुमसे मुसाफिर भी
मुझे तो बस हाथ मिलाना है और आगे बढ़ते जाना है।
उम्मीद नहीं करता मैं तुम्हारे साथ चलने की
उम्मीद बस ये कि चलो साथ दो पल के लिए।
सफर लम्बा है और मंजिल दूर
तुम शायद चल नहीं पाओगे और मंजिल आ नहीं पाएगी।
मिलूँगा मैं तुमसे मुस्कुरा कर
और मुस्कुराकर ही हाल पूछूँगा।
लेकिन परदेसी हूँ मैं
मुस्कुराकर छोड़ जाऊँगा तुम्हें बीच राह में।
कभी यह गिला ना करना कि छोड़ गया वो
हमें बिछड़न पता है इसलिए गले नहीं लगाते।
हमेशा साथ निभाने का वादा नहीं करता मैं
मेरी मंजिल दूर है और सफर लंबा।
कुछ देर ठहर कर जानना चाहता हूँ तुम्हें
तुम्हें नहीं मैं जानना चाहता हूँ खुदा की उस फितरत को।
बनाता है वही मिटाता है वही
हस्ती ही है इक रोज मिट ही जाएगी।
मुझे जल्दी है मैं इंतजार नहीं कर पाऊँगा
अगर तुम ठहर गए तो मैं रुक नहीं पाऊँगा।
मंजिल है दूर और थकना नहीं मुझे
टूट जाऊँगा लेकिन झुक नहीं पाऊँगा।
मंजिल के दरमियाँ फासले तो हैं
पर सफर का सफर भी इक सफर है मेरे दोस्त।
इन वादियों से गुजरते हुए
इन पहाड़ों से बतलाकर
उम्मीदों का बोझा लिए
मैं चलता जाऊँगा मैं चढ़ता जाऊँगा।
अगर खुदा ने चाहा और तुमने हिम्मत की
तो हम एक बार फिर जरूर मिलेंगे मेरे अजीज।
वो जो मंजिल होगी मुझ मुसाफिर की
बस वही हमारी मुलाकात होगी।
साथ चलने में हर्ज नहीं मुझे
लेकिन मैं धीरे चला तो खुदा से नहीं मुलाकात होगी।
तुमसे भी करेंगे बातें हम बेहिसाब
तुम आना जरा ठहर के फिर तुमसे बात होगी।
तुम रास्ते में होंगे और हम मंजिल पर
बस उसी दरमियाँ मेरी खुदा की मुलाकात होगी।।