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शहीद

शहीद

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वो रोज धमाके सुनते है

जीते हैं जंग के साये में

वो खडे हुए हैं सीमा पर

ले असला अपनी बाहों में


गोलियों की बरसात में

वो लाल लहू से नहाते हैं

होली हो या दिवाली हो

सब सीमा पर ही मनाते हैं


इक आस जो घर पर जाने की

जो पल भर में धुल जाती है

सीमा पार से आकर गोली

साथी को डंस जाती है


फिर कहते हैं इस हालत में

हम घर को जा सकते नहीं

सर कटा सकते हैं लेकिन

सर झुका सकते नहीं


फिर खून खौल सा जाता है

रह रह कर गुस्सा आता है

वो घुंट लहू का पीते हैं

मर मर कर फिर भी जीते हैं


इस वतन चमन के खातिर

अपनी जान देश पर वार गए

खाकर गोली सीने पर वो

सीधे स्वर्ग सीधार गए


सजा तिरंगे में अर्थी‎ जब

घर पर लाई जाती है

याद करा कर कुर्बानी

गोलियां चलाई जाती हैं


सरकारी दलाल भी आते हैं

शहादत गिनाई जाती है

लाख रुपे का चैक दिखा कर

फोटो खिचवाई जाती है


बस इतना सा ये किस्सा है

बस इतनी सी ये कहानी है

ना इनका कोई बुढ़ापा है

ना इनकी कोई जवानी है


बस जीना है वतन के लिए

और सीने गोली खानी है...


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