सेवा का भाव।
सेवा का भाव।
प्रार्थना मेरी स्वीकार करो, सब पर तुम उपकार करो।
प्रसन्न कर सकूँ कैसे तुमको, ऐसा कुछ उपाय करो।।
लक्ष्य से अपने कहीं भटक न जाऊँ, तुमसे कभी भी दूर न जाऊँ।
निकट पहुँचकर कहीं भूल न जाऊँ, मुझ पर तनिक दया तो करो।।
कानों में स्वर तुम्हारा ही गूँजे, नैनों से तुमको ही देखा करूँ।
मन तो मेरा इतना चंचल, इसका कुछ उपचार करो।।
नाम मंत्र का ही जाप करूँ, तुम्हारे ही यश गान कहूँ।
साधना- पथ पर चल सकूँ, मलिन हृदय तुम साफ करो।।
सेवा का भाव हो मन में, सबका ही सम्मान करूँ।
" नीरज" तो जन्म का है पापी, कृपा दृष्टि कर, उद्धार करो।।