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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

से है

से है

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हम रुसवा भी ख़ुद से है

हम तन्हा भी ख़ुद से है,

तुम क्या मेरा गम जानोगे

हमारे आंसू दरिया से है,

हम महफ़िलों में नहीं

अकेले में बहुत ही रोये हैं,

हमारी हंसी भी जख्मों से है

सब समझते है,हम खुश हैं,

रुपये,पैसे आदि से संतुष्ट है

पर हम दुखी प्यार न मिलने से है़,

हमें मुस्कुराये तो साकी

एक ज़माना हो गया है,

पर लोग बोलते हैं

हम बड़े हँसमुख से हैं,

लोग कहते हैं,

हम पत्थर दिल हैं

इस सीने के अंदर,

धड़कता नहीं कोई दिल है

अब भला उन्हें हम क्या बताएं

ये दिल तो बड़ा नाज़ुक है,

हम तो रो देते हैं

एक फूल की मार से हैं।



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