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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract

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Dhan Pati Singh Kushwaha

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सदा सहायक नदी

सदा सहायक नदी

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करे जो फिकर इंसान मेरी, सतत मदद करूंगी चाहे बीतें कई सदी

गंगा-यमुना -गोदावरी -शिप्रा ,नामों वाली तेरी मैं सदा सहायक नदी।


आदि काल से सभी सभ्यताएं, फूलीं- फलीं हम नदियों के किनारे

जरूरतें सारी पूर्ण हुईं अपनी और,थे पूरे हुए सभी उद्दैश्य तुम्हारे।

समाधान हुए हर मुश्किल के, और तेरे पूरे हुए  अरमान  भी सारे

होकर के वशीभूत में लोभ के,कुछ उठते गये गलत कदम भी तुम्हारे

होंगे कौन  बुरे  परिणाम तूने सोचे नहीं  , बीत गयीं कुछ ऐसे  सदीं।

करें जो फिकर इंसान मेरी..।


बढ़ती जो गयी संख्या तो तेरी, सतत् बढ़ती रही जरूरत भी तुम्हारी

बढ़ती गईं इच्छाएं नई ,और मिटी न प्रलोभन की बढ़ी भूख तुम्हारी।

पूरा करने हित इन इच्छाओं को, किए अनुसंधान और अन्य तैयारी

किए अनदेखे लाभ और हानि प्रलोभन में,सभी दूरदृष्टि तो तुमने बिसारी

केवल लाभ की चिंता धरी, भूलकर नेककाम किए ऐसे जिनसे फैली बदी।

करें जो फिकर इंसान मेरी..।


चेतन हो या फिर जड़ होवे जगत में, देगा वहीं मिला उसे  जैसा

साथ कर्म के होवे भी भाव प्रधान, करें नहीं दौलत रूपया न पैसा।

की नहीं जो परवाह सहायक की, मिलेगा बदले में किया है जैसा

रुके प्रवाह या जल जीव घुटै,तेरा होगा हाल भी इन्हीं के ही जैसा

भोगोगे दुष्परिणाम जो उपजाए तूने, और रही जिन्हें भोग नदी।

करें जो फिकर इंसान मेरी..।


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