सदा से झूठ ये लँगड़ा रहा है
सदा से झूठ ये लँगड़ा रहा है
हमेशा से बहुत तनहा रहा है ।
हमारे दिल का जो कमरा रहा है ।।
सितम हम पर बहुत करता रहा है ।
हमारे दिल का जो टुकड़ा रहा है ।।
उसे कैसे फना समझूँ भला जब ;
मेरे अंदर सदा जिन्दा रहा है ।
बिना बैसाखियों के क्या चलेगा ;
सदा से झूठ ये लँगड़ा रहा है ।।