STORYMIRROR

Neerja Sharma

Abstract

3  

Neerja Sharma

Abstract

सच्ची खुशी

सच्ची खुशी

1 min
990

रूपया, पैसा, दौलत,से

खरीद सकते हैं सब कुछ

नहीं मिलती इस जहाँ में 

मन की सच्ची खुशी।


बड़े घरों में रहने वाले

गर्मी सर्दी मौसम में 

खुद को तो बचा लेते हैं 

पर सच्ची खुशी कहाँ ?


हर मौसम वेश बदल कर 

भर पेट खाना खाकर भी 

बड़े लोग जी तो लेते हैं 

पर सच्ची खुशी कहाँ ?


खुशी तो है उसके पास है

जो कम पहनकर ढका है  

 कम खाकर पेट भरा है 

घर छोटा पर मन खुश है।


लोभ लालच छलावा है

सब होने पर और बढ़ता है 

सच्चा सुख जो पाना है

मन को संतुष्ट बनाना है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract