सबसे सस्ता और अच्छा मनोरंजन।
सबसे सस्ता और अच्छा मनोरंजन।
इंसान की ये फितरत,
जब से हुआ पैदा,
चित्रों से गहरा नाता,
बहुत उत्साह से,
उन्हें देखता,
भिन्न भिन्न कल्पनाएं करता,
उसी अनुसार,
हावभाव देता।
अगर ये चित्र,
चलचित्र हो,
तो सोने पर सुहागा,
उसको आभास होता,
जैसे ये फिल्म,
उसकी निजी जिंदगी,
वहीं उसमें,
कोई किरदार कर रहा।
वैसे तो जीवन में,
अनगिनत फिल्में,
अलग अलग भाषाओं में देखी।
परंतु पसंद कुछ,
जो सच्चाई के हो निकट,
उन्हें ही करता।
तो मुझे याद आती,
राजकपूर की फिल्म,
"जागते रहो"।
उसमें एक देहाती आदमी,
पहली बार शहर आता,
हर कोई उसे,
शक की निगाह से देखता,
चोर समझता,
उसे पकड़ने की कोशिश करता,
वो डर के मारे,
कभी एक घर में,
कभी दुसरे घर में छिपता,
आखिर उसे,
एक छोटे बच्चे में,
ईमानदारी नजर आती,
बाकि सब दोगूले लगते।
जब लोग उसे पकड़ने के लिए,
आगे बढ़ते,
तो वो लट्ठ उठा लेता,
ये देख सब सहम जाते,
और फिर वो सच्चाई बयान करता।
ये बात है,
अगर डरोगे,
तो हर कोई डराएगा,
जिस दिन सीधे खड़े हो जाओगे,
सब भाग जाएंगे।