सब्र और समर्पण
सब्र और समर्पण
जज़्बातों के समंदर से,
लफ़्ज़ों की लहरों तक,
साहिल की कगार पर,
इस प्रेम को पेश किया,
उस सूर्य को,
जो भोर से संध्या तक,
अपने प्रदीप्त से,
मुझे रोशन करता,
और कोमल ताप से,
इस शीत ऋतू,
और शरद काया को,
जीवित कर देता।
मगर, प्रेम एक त्याग है,
इच्छा का, बंदिश का,
कुछ समय के लिए ही सही,
विराग ज़रूरी है,
पृथिक करके खुदको,
सब्र और समर्पण से पूर्ण,
इस प्रेम का स्मरण करके,
आनन्द का अनुभव होता है।
