सबको साथ रखे(नेग लोक व्यवहार)
सबको साथ रखे(नेग लोक व्यवहार)
गीत
सब को साथ रखें खुशियों में
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सबको साथ रखें खुशियों में,
सबको लेकर साथ चलें
सबके घर उजियारा तब हो,
सबके घर जब दीप जलें।
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नेगों की ये प्रथा पुरातन,
सदियों से चलती आई
खुशियों के मौके पर खुशियां,
इसने हरदम बरसाई।
शादी कर जब भैया आए,
दरवाजे पर ही बहना।
नेग मांगती मिल जाएगी,
नकदी दो या दो गहना।
नहीं हटूंगी नेग बिना मैं,
चाहे सारी रात ढ़ले।
सबके घर उजियारा तब हो,
सबके घर जब दीप जले।
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घोड़े से जीजा उतरा तो,
करी चढ़ाई साले ने।
नेग अगर दोगे उतरूंगा,
कहा ये चढ़ने वाले ने।
साली ने जीजा से मांगा,
नेग जुतियों के बदले।
जीजा रूठ गया खाने पे,
नेग मिले तो दिल पिघले।
प्यार सदा ही इससे बढ़ता,
प्यार किसी को नहीं छले।
सबके घर उजियारा तब हो,
सबके घर जब दीप जले।
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नेग मांगते उभयी लिंगी,
खुशियों के अवसर पाकर।
चाहे पुत्र जन्म हो चाहे,
शादी का हो कोई घर।
मुहरत अच्छा कोई करने,
लाये जल भर कर बर्तन।
या कोई झाडू लेकर के,
नेग मांगता हो खुशकर।
हो "अनंत" कल्याण सभी का,
तभी मनोरथ यार फले।
सबके घर उजियारा तब हो ,
सबके घर जब दीप जले।
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अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच