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Bhawna Kukreti Pandey

Tragedy

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Bhawna Kukreti Pandey

Tragedy

सब्ज और सूखती पत्तियां

सब्ज और सूखती पत्तियां

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सूखती पत्तियों

का दुख, दर्द औऱ भय

सब्ज पत्तियां

कभी नहीं समझेंगी,

वे इठलाएंगी

अपनी चिकनाहट पर

इतराएंगी ,

अपनी ताजगी पर।


हवाओं को

मोड़ेंगी अपनी तरह से

बिना समझे उसका असर

थरथराती सूखती

पत्तियो पर

उनकी ये बेरुखी,

बेअदबी और बेशर्मी

सब्जियत की और सुखा देती है

पीला पड़ता जिस्म

सूखती पत्तियों का ।


मौसमो की

समझ भी निचोड़ देती है

ताकत सर उठाये रखने की

झड़ती पत्तियों में

खुद ब खुद

सूखती पत्तियां

समझती हैं हरी पत्तियों की

बगावत जो पेड़ पर अधिकार के लिए

कुलबुलाता है उनके मन के

अंधेरे कोने में।


फिर भी

उदास होती है वे

उन्ही दंभी खुदगर्ज़

पत्तियों के लिए

की झड़ती सूखी

पत्तियां जानती है

हश्र उनका भी।



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