सावन
सावन
काले काले मेघा तू ऐसे कैसे बरसा
तन तो मेरा भीग गया मन अभी भी प्यासा,
काली सांवली घटा है छाई, रुत भी भीगा भीगा
तन तो मेरा धुल गया मन को भिगोना होगा,
रूत आएगी रूत जाएगी हम तो रहेंगे यूँ ही
बिन सावन और बिन साजन के कैसे कटेंगे दिन भी,
देखो देखो सावन आया झूले पड़े अंगना में,
मन भी मेरा झूम उठा अब साजन के गाने में,
अब तो साजन आन मिलो और भीगो दो मेरे मन को,
झूमने वाले सावन जा अब तू ही बता साजन को !!