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SANJAY SALVI

Others

3  

SANJAY SALVI

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“मयखाना”

“मयखाना”

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शाम ढ़लते ही दिए जलते हैं,

आग लगती है सीने में,

कदम पड़ते हैं मयखाने में।

जाम तो हम यूं भी उठा लेते हैं ,

पर साकी के होठों से पीने का मजा कुछ और ही है।

शराब तो हम सभी पी जाते हैं,

पर उसकी आंखो ने जो पिला दी वो कुछ और ही है।

वैसे तो हम सीधे सीधे जाते हैं अपने ही घर,

पर लड़खड़ाते जाने का मजा कुछ और ही है उसके दर।

अब ना है हमें दुनिया से कोइ खौफ ना ही कोइ डर

सुबह के भूले हम शाम को जाते हैं मयखाने पर।



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