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श्रुती मुंगीकर

Tragedy Action

4.5  

श्रुती मुंगीकर

Tragedy Action

सावित्री....

सावित्री....

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तहे दिल से प्रणाम करती हूँ आपको सावित्री ।

आपके ही तो कारण जाग उठी आज ये स्त्री।।


संस्कारों ने सिखाया तू आदिशक्ती का स्वरूप है।

दिल ने भी ठान ली तू उसका ही तो रूप हैं।।


उड़ने लगी मैं भी मन मस्त- मगन होकर ।

पर जाना मैंने जान बुझकर दुर्बल कर दिये मेरे पर ।।


पररिक्त शरीर से जब बहने लगा रुधीर ।

आदिशक्ती का रूप हूँ कहने को मैं अधीर।।


बहता हुआ रुधीर भी कर ना सका समाधान उनका।

कारण इसी होने लगा अध: पतन मेरे स्त्रीत्व का।।


 माना की तूने रूप न दिखाया आदिशक्ती का।

 धन्य कर दिया मां जन्म लेकर सावित्री का।।

 

सावित्री बनी सरस्वती मधुर स्वर गूंज उठा क

ानों में।

ज्ञानामृत के नए पर लेकर उड़ने लगे हम फिर से आसमान में।।

 

दिखाया शौर्य और साहस रणभूमि में।

दुश्मन आज भी काँपते है रानी झांसी के नाम से।।

 

साहित्य, कला, क्रीड़ा आज हर क्षेत्र में हैं नारी।

समंदर के लहरों से लड़ने कभी बनती है पतवारी।।


 जिस नारी के लिए अंतराल ही था रिक्त स्थानों की पूर्ति।

 वहीं कल्पना बनी है आज सब के दृष्टि में मूर्ति।।

 

पुरुष प्रधान संस्कृति में स्त्री फहरा रही है इतनी कीर्ति।

तो सम्पूर्ण नारी शक्ति को करती हूं बिनती ।।


 इन्हीं असामान्य स्त्रियों की लेनी है हमें स्फूर्ति ।

 तभी पूर्ण विकसित होगी ये भारतीय संस्कृति।।


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