STORYMIRROR

श्रुती मुंगीकर

Romance Tragedy Inspirational

3  

श्रुती मुंगीकर

Romance Tragedy Inspirational

जमीं आसमां.....

जमीं आसमां.....

1 min
245

वो बरसता रहा और वह अपने आप में उसे समाती गई।

उसका यूँ बेझिझक बरसना शायद बेपरवाह लगता था।

पर यह बरसना इसके अंदर एक मजबूत नींव पनपता

गया।


यह बरसात आजमाती गई उसे और वो दिन-ब-दिन

निखरती चली गई।

अब वो उसके धूप में सेककर, सर्दी में कतरा-कतरा

उसमें घुलकर, जमी आसमां का भेद मिटा रही है।


उसका सीधापन और इसकी यह सादगी मिलते आ रहे है,

हर भोर, हर शाम में और ऋतु बदलते रहे बसंत के बाहर से,

शिशिर की पतझड़ तक।


इसी तरह वे पुनः पुनः एक ऋतु चक्र पूरा करते आए हैं

सदियों से।

उसका सीधापन और इसकी सादगी.......


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance